AIN NEWS 1: जैसा कि आप जानते है कि वैराग्य को समझने या उसे पाने के लिए जीवन मैटेरियलिस्टिक दुनिया का खूब ही भोगना पड़ता है। जिस किसी भी एक असफल इंसान को बेहतर तरीके से सफलता की अहमियत को समझता है। उसी प्रकार पैसों का एक अंबार लगा देने वाले लोग जब वैराग्य की दुनिया में पूरी तरह से उतरते हैं तो वह वैराग्य को बहुत ही बेहतर तरीके से समझ पाते हैं। क्योंकि उन्होंने हमने जीवन के हर रंग को अच्छे से भोग रखा होता है। कई सारी कहानियां आपने दुनियाभर की सुनी ही होंगी। एक कहानी आज हम आपको यहां पर बताने जा रहे हैं। दरअसल गुजरात के एक ऐसे अरबपति की ये कहानी है। इस अरबपत्ति व्यापारी का नाम है भावेश भाई भंडारी। भावेश भाई भंडारी काफी ज्यादा धनी और पैसे वाले आदमी हैं, लेकिन उन्होंने अपनी जीवनभर की कमाई को ही अब दान कर दिया है।
इस बिजनेसमैन ने अपनाया वैराग्य
दरअसल यहां हम आपको बता दें गुजरात के हिम्मतनगर के रहने वाले इस अरबपति कारोबारी भावेश भाई भंडारी की कहानी हर तरफ ही फैली हुई है। सोशल मीडिया हो या फिर लोगों की जुबान। गुजरात के इस अरबपत्ति ने अपने जीवनभर की कमाई को यानी अपनी पूरी संपत्ति को ही दान करने और उससे सन्यास लेने का फैसला किया है। भावेश भंडारी की यह कहानी अभी हर न्यूज चैनल पर दिखाई जा रही है। इसमें दावां किया जा रहा कि भावेश भंडारी और उनकी पत्नी ने जैन धर्म में दीक्षा लेने का फैसला भी किया है। जैन धर्म में दीक्षा लेने का अर्थ ही पूरी तरह से सन्यास लेना होता है यानि भौतिक संसार से विदा यानि दूरी बना लेना और एक संत की तरह पूरे जीवन को ही मानव कल्याण के लिए समर्पित कर देना।
उन्होने दान की अपनी 200 करोड़ की संपत्ति
यहां हम बता दें भावेश भंडारी और उनकी पत्नी ने सन्यास लेने से पूर्व ही अपने जीवनभर की सारी कमाई यानी 200 करोड़ रुपये की संपत्तियों को दान कर दिया है। न्यूज रिपोर्ट में तो यह भी कहा जा रहा है कि इस दंपत्ति के दो बच्चे भी हैं। एक बेटा और एक बेटी। बेटा और बेटी ने भी दो साल पहले ही सन्यास लिया था। अब उनके माता और पिता ने भी बच्चों की ही तरह सन्यास लेने का अपना फैसला लिया है। बता दें कि इस भावेश का जन्म गुजरात के हिम्मतनगर के एक समृद्ध परिवार में हुआ था।वह कंस्ट्रक्शन समेत कई सारे बिजनेस चला रहे थे। वहीं उनका कंस्ट्रक्शन का व्यापार भी खासा अच्छा चल रहा था। हालांकि अब उन्होंने सारे काम-धंधे से खुद को पूरी तरह से दूर कर लिया है और जैन धर्म में ही दीक्षा लेकर दीक्षार्थी बनने का फैसला किया है। बता दें कि 22 अप्रैल को पति और पत्नी को औपचारिक रूप से यह दीक्षा दी जाएगी।