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गाजियाबाद में पत्रकार अपूर्वा चौधरी की जीत: संगठनों के साथ से अनशन ने बदली पुलिस की कार्यशैली, भरोसे की नई शुरुआत!

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Apurva Chaudhary’s Hunger Strike in Ghaziabad Ends Successfully, Sparks Hope for Police Reform

गाजियाबाद में पत्रकार अपूर्वा चौधरी की जीत: अनशन ने दिलाया न्याय, बदले पुलिस के सुर

AIN NEWS 1 गाजियाबाद: लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी पत्रकारिता की ताकत का एक शानदार उदाहरण सामने आया, जब पत्रकार अपूर्वा चौधरी ने पुलिस के गलत व्यवहार के खिलाफ शांतिपूर्ण लेकिन प्रभावशाली तरीके से आवाज उठाई। उन्होंने 1 जुलाई 2025 को गाजियाबाद जिला मुख्यालय पर पुलिस प्रशासन की तानाशाही और महिलाओं के प्रति गलत व्यवहार के खिलाफ अनिश्चितकालीन आमरण अनशन शुरू किया।

इस अनशन का मकसद था—पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाना, खासकर उन अधिकारियों पर जिन्होंने पत्रकारों और आम नागरिकों के साथ अभद्रता की। अपूर्वा ने बताया कि जब पत्रकार ही थाने में सुरक्षित नहीं हैं, तो आम लोगों को न्याय कैसे मिलेगा?

तीन दिन तक लगातार भूख हड़ताल के बाद, माहौल तब बदला जब मधुबन बापूधाम थाने के प्रभारी खुद धरना स्थल पर पहुंचे। उन्होंने अपूर्वा को “छोटी बहन” का दर्जा देकर जूस पिलाया और उनका अनशन समाप्त कराया। यह दृश्य भावनात्मक था और इसमें भाई-बहन जैसे रिश्ते की भावना देखने को मिली। इसने तनाव को खत्म कर, संवाद और विश्वास की नींव रखी।

इस दौरान कविनगर थाना प्रभारी योगेंद्र मालिक ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने दोनों पक्षों के बीच सेतु बनते हुए पूरे मसले को शांति से सुलझाने में मदद की। उन्होंने दिखाया कि प्रशासनिक मामलों में संवेदनशीलता और संवाद से बड़ा कोई समाधान नहीं होता।

अपूर्वा चौधरी ने अनशन के समापन पर कहा कि पुलिस को अपनी छवि सुधारनी चाहिए और सभी के साथ सम्मानजनक व्यवहार करना चाहिए, खासकर महिलाओं के साथ। उन्होंने चेताया कि अगर भविष्य में किसी भी बहन-बेटी के साथ दुर्व्यवहार हुआ, तो वे और भी सख्त रुख अपनाएंगी।

उन्होंने इस आंदोलन को सफल बनाने में साथ देने वाले पत्रकार साथियों, सामाजिक संगठनों, राजनीतिक प्रतिनिधियों और आम लोगों का धन्यवाद किया। अपूर्वा ने कहा,

 “मैं उन सभी की कर्जदार हूं जिन्होंने इस संघर्ष में मेरा साथ दिया। आपने मुझे हिम्मत दी, और मैं आजीवन आभारी रहूंगी।”

यह आंदोलन सिर्फ पुलिस के लिए सबक नहीं था, बल्कि पूरे समाज को यह सिखा गया कि यदि इरादे मजबूत हों और प्रयास सकारात्मक हो, तो बदलाव संभव है।

इस आंदोलन के नतीजे क्या रहे?

पुलिस और पत्रकारों के बीच संवाद की नई शुरुआत हुई।

पुलिस अधिकारियों ने आत्मचिंतन किया और आपसी संबंधों को मजबूत करने का भरोसा दिया।

जनता के बीच यह विश्वास जगा कि वे अन्याय के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध से भी बदलाव ला सकते हैं।

अपूर्वा चौधरी का यह अनशन गाजियाबाद ही नहीं, पूरे प्रदेश के लिए एक मिसाल बन गया। यह घटना हमें याद दिलाती है कि जब लोकतंत्र का चौथा स्तंभ खड़ा होता है, तो व्यवस्था झुकती है। संवाद, साहस और एकजुटता से हर अन्याय को मात दी जा सकती है।

अगर आप चाहते हैं कि देश में व्यवस्था जनहित के अनुसार चले, तो इस तरह के प्रयासों का समर्थन जरूरी है। अपूर्वा चौधरी की यह लड़ाई सिर्फ उनकी नहीं थी, बल्कि हर उस व्यक्ति की थी जो न्याय की उम्मीद रखता है।

Apurva Chaudhary, a journalist from Uttar Pradesh, staged a powerful hunger strike in Ghaziabad to protest against police misconduct. Her protest, which garnered massive public and media support, ended after a symbolic reconciliation with police officials. This event highlighted issues of press freedom, police behavior, and citizen trust, marking a pivotal moment for reform in Uttar Pradesh’s law enforcement and strengthening the role of journalism in Indian democracy.

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