क्या सच में गोबर का लेप घर को ठंडा रखता है? जानें वैज्ञानिक और धार्मिक कारण

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AIN NEWS 1 | भारत में गाय को पूजनीय माना जाता है। इसके गोबर और गोमूत्र को पवित्र और उपयोगी समझा जाता है। खासकर पुराने समय में ग्रामीण इलाकों में घरों की दीवारों और ज़मीन पर गोबर का लेप लगाया जाता था। यह सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी काफी फायदेमंद माना जाता था।

💡 दिल्ली कॉलेज में गोबर का लेप बना चर्चा का विषय

हाल ही में दिल्ली यूनिवर्सिटी के लक्ष्मीबाई कॉलेज की प्रिंसिपल द्वारा कॉलेज की दीवारों पर गोबर का लेप करवाया गया। उनका मानना है कि इससे गर्मियों में कमरे ठंडे रहते हैं। इसका वीडियो वायरल होते ही सोशल मीडिया पर यह मुद्दा चर्चा में आ गया।

🌿 गोबर के लेप से कैसे मिलती है ठंडक?

  • प्राकृतिक इंसुलेटर:
    गाय का गोबर गर्मी को अवशोषित कर लेता है और कमरे को ठंडा बनाए रखता है। वहीं, सर्दियों में यह अंदर की गर्मी को बाहर जाने से रोकता है।

  • कम खर्च वाला उपाय:
    गोबर मिट्टी के साथ आसानी से मिल जाता है और सस्ते में मिल जाता है, इसलिए यह ग्रामीण इलाकों में बेहद प्रचलित था।

  • बिजली की बचत:
    गोबर के लेप से दीवारें ठंडी रहती हैं जिससे पंखा या कूलर कम चलाना पड़ता है।

🦠 कीटाणुनाशक गुण भी हैं गोबर में

  • प्राकृतिक डिसइंफेक्टेंट:
    गोबर में लैक्टिक एसिड, अमोनिया और अन्य जैविक यौगिक होते हैं जो कीटाणुओं और वायरस को नष्ट करने में मदद करते हैं।

  • मच्छरों से बचाव:
    यह मच्छरों को दूर रखने में सहायक है और घर में स्वच्छता बनाए रखने में मदद करता है।

  • ऑक्सीजन का संचार:
    कई रिपोर्ट्स के अनुसार, गोबर के प्रयोग से घर में वायु की गुणवत्ता बेहतर होती है और एक सकारात्मक माहौल बनता है।

गाय के गोबर से घर की लिपाई केवल धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह वैज्ञानिक रूप से भी फायदेमंद है। गर्मियों में घर को ठंडा रखना, बिजली की बचत करना और कीटाणुओं को मारना— ये सभी फायदे इस प्राकृतिक उपाय को आज के समय में भी प्रासंगिक बनाते हैं।

Coating walls with cow dung is an age-old Indian tradition, believed to cool homes during summers and protect from germs. Cow dung acts as a natural insulator, absorbing heat and retaining warmth in winter. It also contains compounds like lactic acid and ammonia, which help kill harmful microbes. This eco-friendly method is gaining attention again as people move towards natural living solutions.

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