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दिहुली हत्याकांड: 44 साल बाद मिला इंसाफ, तीन दोषियों को फांसी?

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AIN NEWS 1: फिरोजाबाद जिले के जसराना के गांव दिहुली में 18 नवंबर 1981 को दिल दहला देने वाला नरसंहार हुआ था। इस जघन्य अपराध में 24 दलितों की निर्मम हत्या कर दी गई थी। 44 साल तक चले इस केस में आखिरकार इंसाफ मिल गया। विशेष डकैती कोर्ट ने तीन आरोपियों – कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को फांसी की सजा सुनाई है।

कैसे हुआ दिहुली नरसंहार?

18 नवंबर 1981 की शाम को जसराना के दिहुली गांव में कुख्यात डकैत संतोष और राधे के गिरोह ने तांडव मचाया। ये गिरोह एक मुकदमे में गवाही देने के विरोध में दलित समुदाय पर हमला करने आया था। हथियारों से लैस बदमाशों ने महिलाओं, बच्चों और पुरुषों पर अंधाधुंध गोलियां चलाईं, जिससे 24 लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। हत्या के बाद डकैतों ने गांव में लूटपाट भी की और फरार हो गए।

मामले की रिपोर्ट और गिरफ्तारी

अगले दिन, 19 नवंबर 1981 को लायक सिंह नाम के व्यक्ति ने थाना जसराना में इस हत्याकांड की रिपोर्ट दर्ज कराई। पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुए मुख्य आरोपी राधे और संतोषा समेत 20 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया। फरवरी 1982 तक इनमें से 15 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया।

मुकदमे की लंबी कानूनी लड़ाई

26 फरवरी 1982 को पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की।

13 मई 1982 को कोर्ट में आरोप तय किए गए।

5 मई 1983 को हाईकोर्ट के आदेश पर मुकदमा प्रयागराज की सेशन कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया।

19 अक्टूबर 2024 को मामले की बहस मैनपुरी सेशन कोर्ट में शुरू हुई।

11 मार्च 2025 को तीन दोषियों – कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को दोषी करार दिया गया।

18 मार्च 2025 को अदालत ने तीनों को फांसी की सजा सुना दी।

कोर्ट का फैसला और दोषियों की सजा

विशेष डकैती कोर्ट की एडीजे इंदिरा सिंह ने इस मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए तीनों दोषियों को फांसी की सजा दी। इसके अलावा, कप्तान सिंह और रामसेवक पर 2-2 लाख रुपये और रामपाल पर 1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।

सजा की धाराएं:

1. आईपीसी 302 और 149 – हत्या और गैरकानूनी भीड़ का हिस्सा बनने पर फांसी

2. आईपीसी 307 – जानलेवा हमले के लिए आजीवन कारावास

3. आईपीसी 148 – घातक हथियारों से लैस होकर उपद्रव करने पर 3 साल की कैद

4. आईपीसी 120बी – आपराधिक षड्यंत्र के तहत आजीवन कारावास

5. आईपीसी 449 और 450 – घर में घुसकर अपराध करने पर आजीवन कारावास

सजा सुनते ही रोने लगे दोषी

जब कोर्ट ने सजा का ऐलान किया, तो दोषी कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल के चेहरे पर मायूसी छा गई। तीनों फूट-फूटकर रोने लगे। कोर्ट के बाहर मौजूद उनके परिवारजन भी भावुक हो गए।

अब हाईकोर्ट में अपील कर सकते हैं दोषी

कोर्ट के फैसले के बाद दोषियों को मैनपुरी जिला कारागार ले जाया गया। वहां इन्हें 14 दिनों के लिए क्वारंटीन बैरक में रखा जाएगा। कानूनी प्रक्रिया के तहत ये दोषी 30 दिन के भीतर हाईकोर्ट में अपील कर सकते हैं। हाईकोर्ट सजा को बरकरार रख सकता है या इसमें संशोधन कर सकता है।

44 साल बाद आया इंसाफ

यह केस 44 साल तक अलग-अलग अदालतों में चला। इस दौरान कई गवाहों की मौत हो गई, लेकिन उनकी गवाही के आधार पर कोर्ट ने तीन दोषियों को फांसी की सजा सुनाई।

मामले के अहम गवाह:

1. लायक सिंह

2. वेदराम

3. हरिनारायण

4. कुमर प्रसाद

5. बनवारी लाल

अभी भी फरार हैं कुछ आरोपी

इस हत्याकांड के 20 आरोपियों में से 13 की मौत हो चुकी है। लेकिन लक्ष्मी, इंदल, रुखन और ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना अभी फरार हैं। पुलिस इनकी तलाश कर रही है, या फिर इनकी मौत की पुष्टि होने पर कोर्ट में रिपोर्ट दाखिल की जाएगी।

मारे गए 24 दलितों के नाम

1. ज्वाला प्रसाद

2. रामप्रसाद

3. रामदुलारी

4. श्रृंगार वती

5. शांति

6. राजेंद्री

7. राजेश

8. रामसेवक

9. शिवदयाल

10. मुनेश

11. भरत सिंह

12. दाताराम

13. आशा देवी

14. लालाराम

15. गीतम

16. लीलाधर

17. मानिकचंद्र

18. भूरे

19. कुं. शीला

20. मुकेश

21. धनदेवी

22. गंगा सिंह

23. गजाधर

24. प्रीतम सिंह

दिहुली हत्याकांड उत्तर प्रदेश के सबसे भयावह सामूहिक हत्याकांडों में से एक था। इस केस में 44 साल बाद न्याय मिला और दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गई। अब यह देखना होगा कि हाईकोर्ट इस फैसले को बरकरार रखता है या इसमें कोई संशोधन करता है।

The Dihuli massacre of 1981 in Firozabad was one of the most brutal crimes in Uttar Pradesh, where 24 Dalits were killed by a gang of dacoits. After 44 years, the court verdict has sentenced three convicts to death penalty. The Jasarana village crime case has seen a long legal battle, and justice has finally been served. The convicts can appeal to the High Court within 30 days. This case highlights the delayed justice system and the struggle for fairness in Dalit atrocities cases.

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