गोवर्धन पूजा की तारीख और महत्व
AIN NEWS 1 गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट पर्व भी कहा जाता है, कार्तिक मास की प्रतिपदा तिथि को भगवान श्रीकृष्ण की आराधना के रूप में मनाई जाती है। इस बार यह पूजा शनिवार, 3 नवंबर 2024 को आयोजित होगी। हिंदू धर्म में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन भगवान कृष्ण ने इंद्र देव के प्रकोप से बृजवासियों की रक्षा की थी। इस पूजा के माध्यम से लोग भगवान गोवर्धन और प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करते हैं।
कैसे करें गोवर्धन पूजा
गोवर्धन पूजा में गोबर से भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है। यहाँ जानें इस पूजा को संपन्न करने का संपूर्ण विधि-विधान:
1. भगवान की प्रतिमा: गाय के गोबर से भगवान श्रीकृष्ण की प्रतिमा और गोवर्धन पर्वत का प्रतीक बनाएं। इसे भूमि पर सुंदर तरीके से सजाएं।
2. भोग अर्पण: गोवर्धन पूजा में भगवान को विशेष प्रकार का भोग लगाया जाता है। कड़ी, चावल, खील, बताशे, और अन्य मिठाइयों का भोग गोवर्धन पर्वत पर चढ़ाएं। इसे ‘अन्नकूट’ के रूप में जाना जाता है।
3. दीप प्रज्वलित करें: पूजा स्थल के पास दीपक जलाएं और पूजा के दौरान गोवर्धन की कथा सुनें। यह पूजा का महत्वपूर्ण अंग है और इसके बिना गोवर्धन पूजा अधूरी मानी जाती है।
4. पूजा का मुहूर्त: गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त 3 नवंबर को शाम 6:35 बजे से रात 8:15 बजे तक रहेगा। इस दौरान पूजा करने से अधिक लाभ माना गया है।
5. परिक्रमा: पूजा के पश्चात् गोवर्धन की सात परिक्रमा करना शुभ माना जाता है। यह परिक्रमा परिवार की सुख-समृद्धि और सुरक्षा की कामना से की जाती है। परंपरानुसार, घर के पुरुष सदस्य इस परिक्रमा को संपन्न करते हैं।
गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वापर युग में इंद्र देव का घमंड उनके क्रोध का कारण बन गया था। इंद्र को अपनी शक्ति और देवताओं के राजा होने का अभिमान था। जब श्रीकृष्ण ने देखा कि ब्रजवासी हर वर्ष इंद्र की पूजा कर रहे हैं, तो उन्होंने गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का सुझाव दिया। ब्रजवासियों ने इंद्र की जगह गोवर्धन की पूजा की तो इंद्र क्रोधित हो उठे और उन्होंने बदला लेने के लिए बृज क्षेत्र में भारी वर्षा शुरू कर दी। इतनी घनघोर बारिश हुई कि लोग अपने घरों और खेतों में डूबने लगे।
उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और बृजवासियों को उसकी छांव में सुरक्षित रखा। सात दिनों तक भगवान कृष्ण ने पर्वत को उठाए रखा, और इस तरह ब्रजवासियों की रक्षा की। इंद्र देव को अपनी गलती का अहसास हुआ, उन्होंने भगवान कृष्ण से माफी मांगी। तब से, हर साल कार्तिक महीने की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा के रूप में यह पर्व मनाया जाता है। आज भी लोग गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा करने और उसकी पूजा करने मथुरा आते हैं।
गोवर्धन पूजा का संदेश
गोवर्धन पूजा केवल धार्मिक आस्था का पर्व नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और भगवान के प्रति आभार प्रकट करने का भी प्रतीक है। भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र देव के अहंकार को खत्म कर यह संदेश दिया कि सच्चा देवता वही है जो प्राणियों की रक्षा करता है। इस पूजा के माध्यम से लोग भगवान को धन्यवाद देते हैं और प्रकृति के महत्व को समझते हैं।
गोवर्धन पूजा के इस पर्व से हम सीखते हैं कि जीवन में घमंड और अहंकार का कोई स्थान नहीं है।