AIN NEWS 1 | भारत और अमेरिका के बीच रक्षा सहयोग लगातार मजबूत हो रहा है। हाल के दिनों में अमेरिका की ओर से टैरिफ बढ़ाने जैसी धमकियों के बावजूद, दोनों देशों के बीच एक महत्वपूर्ण रक्षा समझौता होने वाला है। यह डील भारतीय नौसेना को न सिर्फ आधुनिक तकनीक देगी बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region) में भारत की समुद्री ताकत को भी कई गुना बढ़ा देगी।
4 अरब डॉलर की बड़ी रक्षा डील
भारत और अमेरिका के बीच 6 नए P-8I मैरीटाइम पेट्रोल एयरक्राफ्ट की खरीद को लेकर समझौता लगभग तय हो गया है। यह सौदा करीब 4 अरब डॉलर का है। इस समझौते पर चर्चा और अंतिम रूप देने के लिए 16 से 19 सितंबर के बीच अमेरिका का एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल दिल्ली आने वाला है।
अमेरिकी प्रतिनिधि मंडल की भूमिका
आने वाला प्रतिनिधिमंडल केवल औपचारिकता निभाने के लिए नहीं होगा, बल्कि इस डील की रणनीतिक गहराई को तय करेगा। इसमें शामिल होंगे:
यूएस डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस के अधिकारी
बोइंग कंपनी के प्रतिनिधि
ऑफिस ऑफ अंडर सेक्रेटरी ऑफ डिफेंस फॉर पॉलिसी
नेवी इंटरनेशनल प्रोग्राम्स ऑफिस (NIPO) – जो वैश्विक समुद्री साझेदारियों को संभालता है
मैरीटाइम पेट्रोल एंड रिकग्निशन एयरक्राफ्ट प्रोग्राम ऑफिस (PMA 290) – जो एयरक्राफ्ट अधिग्रहण और तकनीकी सहयोग पर काम करता है
डिफेंस सिक्योरिटी कोऑपरेशन एजेंसी (DSCA) – जो रक्षा साझेदारियों को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाती है
भारतीय नौसेना की ज़रूरतें क्यों बढ़ीं?
भारतीय नौसेना के पास फिलहाल 12 P-8I एयरक्राफ्ट हैं। लेकिन हिंद महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती सक्रियता और उसकी नौसेना की उपस्थिति ने भारत के लिए चिंता बढ़ा दी है। ऐसे में निगरानी और पनडुब्बी रोधी क्षमता (Anti-Submarine Warfare) को मजबूत करना भारत की प्राथमिकता बन गया है।
इसी वजह से नौसेना को और 6 P-8I एयरक्राफ्ट की आवश्यकता है। इसके साथ ही, नौसेना MQ-9B ड्रोन का भी उपयोग कर रही है। 2029 तक नौसेना के पास 31 ड्रोन होंगे, जो समुद्री निगरानी को नई ताकत देंगे।
P-8I एयरक्राफ्ट की तकनीकी खूबियां
P-8I मैरीटाइम पेट्रोल एयरक्राफ्ट भारतीय नौसेना की “आंख और कान” कहे जा सकते हैं। इनकी खासियतें हैं:
यह 41,000 फीट की ऊंचाई तक उड़ान भर सकता है।
एक बार उड़ान भरने के बाद 8,300 किलोमीटर तक का सफर तय कर सकता है।
इसमें एंटी-शिप मिसाइल, क्रूज मिसाइल, हल्के टॉरपीडो और एंटी-सबमरीन वॉरफेयर चार्ज तक ले जाने की क्षमता है।
लंबी दूरी की निगरानी (Long Range Surveillance) और पनडुब्बियों का पता लगाने (Submarine Detection) में बेहद कारगर।
इन क्षमताओं के चलते यह विमान न केवल भारत की नौसेना को आधुनिक बनाएगा, बल्कि हिंद महासागर में रणनीतिक बढ़त भी देगा।
MQ-9B ड्रोन: अतिरिक्त निगरानी की ताकत
भारत पहले से ही MQ-9B ड्रोन का इस्तेमाल कर रहा है। ये ड्रोन वास्तविक समय (Real-Time) में निगरानी की सुविधा देते हैं। समुद्री सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए इन्हें P-8I के साथ मिलकर काम करने के लिए डिजाइन किया गया है।
टैरिफ विवाद के बावजूद डील पर असर नहीं
हाल ही में अमेरिका ने रूस से तेल खरीदने और कुछ व्यापारिक मसलों को लेकर भारत पर हाई टैरिफ लगाए थे। कई विशेषज्ञों का मानना था कि इसका असर भारत-अमेरिका के रक्षा सहयोग पर पड़ेगा। लेकिन हकीकत यह है कि इस डील पर कोई असर नहीं पड़ा।
फरवरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान जारी संयुक्त बयान में साफ कहा गया था कि यह समझौता अंतिम चरण में है। यह दिखाता है कि दोनों देशों के बीच रक्षा संबंध व्यापारिक विवादों से अलग हैं।
रणनीतिक महत्व: हिंद महासागर में भारत का दबदबा
भारत की इस डील का सबसे बड़ा फायदा हिंद महासागर क्षेत्र में मिलेगा। यहां चीन की नौसेना लगातार सक्रिय हो रही है और उसने कई बंदरगाहों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है।
P-8I एयरक्राफ्ट और MQ-9B ड्रोन की तैनाती से:
चीन की हर गतिविधि पर नज़र रखी जा सकेगी।
समुद्री सीमा की सुरक्षा मजबूत होगी।
एंटी-सबमरीन क्षमता में बड़ा सुधार होगा।
मित्र देशों के साथ संयुक्त ऑपरेशन करना आसान होगा।
भारत और अमेरिका की यह रक्षा डील केवल एक हथियार खरीदने का सौदा नहीं है, बल्कि यह दोनों देशों की बढ़ती रणनीतिक साझेदारी का प्रतीक है। P-8I एयरक्राफ्ट और MQ-9B ड्रोन के जरिए भारतीय नौसेना को न सिर्फ तकनीकी मजबूती मिलेगी, बल्कि हिंद महासागर क्षेत्र में भारत का दबदबा भी बढ़ेगा।
यह सौदा यह भी दर्शाता है कि भारत अब रक्षा क्षेत्र में केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि रणनीतिक साझेदारी का एक अहम हिस्सा बन चुका है। आने वाले वर्षों में यह सहयोग और भी गहरा होगा।