AIN NEWS 1: कुम्भ पर्व भारत का एक ऐसा पवित्र आयोजन है, जो धार्मिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। पुराणों और धार्मिक ग्रंथों में कुम्भ पर्व की महिमा का विस्तार से वर्णन मिलता है। यह पर्व स्नान, दान और भक्ति के माध्यम से जीवन को शुद्ध करने और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
कुम्भ स्नान का महत्व
पुराणों के अनुसार, कुम्भ योग में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम या अन्य पवित्र स्थलों पर स्नान करने से व्यक्ति को अमृतत्व यानी मुक्ति की प्राप्ति होती है। स्कन्द पुराण में कहा गया है:
“जो मनुष्य कुम्भ-योग में स्नान करता है, वह अमृतत्व को प्राप्त करता है। कुम्भ-स्नान करने वाले को देवता भी नमस्कार करते हैं।”
इसके अतिरिक्त, कुम्भ स्नान को अन्य पवित्र स्नानों से भी अधिक फलदायी बताया गया है।
कार्तिक मास के एक हजार स्नान,
माघ मास के सौ स्नान, और
वैशाख मास के करोड़ों स्नानों का फल भी कुम्भ स्नान के बराबर नहीं होता।
(स्कन्द पुराण)
यज्ञ और परिक्रमा से बड़ा कुम्भ स्नान
विष्णु पुराण के अनुसार:
“एक हजार अश्वमेध यज्ञ, सौ वाजपेय यज्ञ और एक लाख बार भूमि की परिक्रमा करने से जो पुण्य मिलता है, वही पुण्य एक बार कुम्भ स्नान करने से प्राप्त होता है।”
हरिद्वार में कुम्भ स्नान का विशेष महत्व
हरिद्वार को कुम्भ पर्व के लिए अत्यंत पवित्र स्थल माना गया है। स्कन्द पुराण में कहा गया है कि जब बृहस्पति कुम्भ राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं, उस समय हरिद्वार में गंगा में स्नान करने से मनुष्य पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त हो जाता है।
“हरिद्वार में कुम्भ स्नान से व्यक्ति को पुनर्जन्म से छुटकारा मिलता है।”
आध्यात्मिक लाभ और मोक्ष का द्वार
कुम्भ पर्व केवल स्नान तक सीमित नहीं है। यह धार्मिक प्रवचन, भक्ति, दान और साधु-संतों के साथ संगम का अद्वितीय अवसर है। यहां भक्तों को अपने कर्मों को सुधारने और आत्मशुद्धि का मार्ग प्राप्त होता है।
कुम्भ पर्व का उद्देश्य व्यक्ति को जीवन की क्षणभंगुरता का अनुभव कराते हुए आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति की प्रेरणा देना है। यह पर्व न केवल धर्म का प्रतीक है, बल्कि भारतीय संस्कृति और सभ्यता का आधार भी है। कुम्भ स्नान एक ऐसा पवित्र अवसर है, जो हमें जीवन को आध्यात्मिक दृष्टि से देखने और आत्मा के शुद्धिकरण का सुअवसर प्रदान करता है।