AIN NEWS 1: प्रयागराज के महाकुम्भ 2025 में देश-विदेश से आए करोड़ों श्रद्धालुओं और साधु-संतों की भीड़ ने भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक ऊर्जा को जीवंत कर दिया है। संगम तट पर आस्था और भक्ति की गंगा बह रही है। इस अद्भुत धार्मिक मेले ने न केवल भारतवासियों बल्कि दुनियाभर के लोगों को आकर्षित किया है।
इन्हीं में से एक इंग्लैंड के मैनचेस्टर निवासी जैकब भी हैं, जिन्होंने भारत की प्राचीन सनातन संस्कृति और इसकी आध्यात्मिक शक्ति से प्रभावित होकर संन्यास धारण कर लिया। अब वे जय किशन सरस्वती के नाम से जाने जाते हैं। उनका जीवन सनातन धर्म के प्रति उनकी गहरी निष्ठा और भक्ति का परिचायक बन चुका है।
10 वर्षों से भारत में हैं जैकब
जैकब, जो अब जय किशन सरस्वती बन चुके हैं, पिछले 10 वर्षों से भारत में ही रह रहे हैं। भारत की संस्कृति और आध्यात्मिकता से प्रभावित होकर उन्होंने काशी, हरिद्वार, ऋषिकेश, मथुरा, वृंदावन, उज्जैन, और पुरी जैसी धार्मिक नगरियों की यात्रा की। उन्होंने बताया कि 2013 में पहली बार भारत आने के बाद उनकी सनातन धर्म के प्रति रुचि और गहरी हो गई।
जय किशन सरस्वती ने हरिद्वार में जूना अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी उमाकांतानंद से दीक्षा लेकर संन्यास ग्रहण किया। इसके बाद वे सनातन धर्म के प्रचार और आध्यात्मिक मार्ग पर चल पड़े। महाकुम्भ 2025 में उन्होंने जूना अखाड़े के साथ संगम में अमृत स्नान किया, जिसे उन्होंने अपने जीवन का सबसे गहरा आध्यात्मिक अनुभव बताया।
इंग्लैंड से भारत तक का सफर
जय किशन सरस्वती ने इंग्लैंड के मैनचेस्टर से बैचलर ऑफ आर्ट्स की पढ़ाई की थी और एक क्रिएटिव एजेंसी में काम करते थे। लेकिन भारत की संस्कृति और भागवत गीता का अध्ययन करने के बाद उनका झुकाव आध्यात्मिकता की ओर बढ़ा। उन्होंने हिंदी और संस्कृत भाषा सीखी और सनातन धर्म को समझने का प्रयास किया।
जय किशन सरस्वती बताते हैं, “सनातन धर्म के दर्शन और इसकी गहराई ने मुझे आत्मिक शांति दी। जब मैंने स्वामी उमाकांतानंद से दीक्षा ली, तब मेरे जीवन ने नई दिशा पाई।”
महाकुम्भ का प्रभाव
प्रयागराज का महाकुम्भ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आध्यात्मिकता का भव्य केंद्र है। इस मेले में विदेशी पर्यटक भी बड़ी संख्या में शामिल हो रहे हैं। फ्रांस, इंग्लैंड, कनाडा, ब्राजील और अन्य देशों से लोग संगम की ओर खिंचे चले आ रहे हैं।
जय किशन सरस्वती के अनुसार, “महाकुम्भ के अमृत स्नान का अनुभव ऐसा था, जो मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया। यहां की ऊर्जा और आस्था ने मुझे अपने भीतर झांकने का अवसर दिया। यह मेरे लिए एक नया जन्म है।”
सनातन धर्म का वैश्विक प्रभाव
महाकुम्भ 2025 में जैकब जैसे लोग यह संदेश दे रहे हैं कि सनातन धर्म की आध्यात्मिक शक्ति सीमाओं से परे है। यह केवल भारत का धर्म नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को जोड़ने का माध्यम है।
जय किशन सरस्वती का जीवन यह प्रमाणित करता है कि सनातन धर्म और इसकी संस्कृति आत्मा को शांति और नई दिशा प्रदान कर सकती है। उनका यह सफर भारत की आध्यात्मिक विरासत का परिचायक है और महाकुम्भ इसका सबसे बड़ा प्रतीक है।
English SEO Paragraph:
MahaKumbh 2025 at Prayagraj has become a hub of spiritual energy and cultural diversity, attracting millions, including Jacob from Manchester, England. Inspired by the profound spiritual essence of Sanatan Dharma, Jacob embraced sannyasa under Swami Umakantananda and now lives as Jai Kishan Saraswati. This event highlights the global influence of Sanatan culture, drawing visitors from countries like France, Canada, Brazil, and beyond. Jai Kishan Saraswati’s transformation from a creative professional to a sannyasi reflects the timeless wisdom of India’s spiritual heritage.