Wednesday, January 15, 2025

महाकुम्भ 2025: मकर संक्रांति पर नागा श्रद्धालुओं का अमृत स्नान, बना आकर्षण का केंद्र?

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AIN NEWS 1 प्रयागराज, 14 जनवरी 2025: महाकुम्भ 2025 की शुरुआत मकर संक्रांति के पावन अवसर पर हुई, जब लाखों श्रद्धालुओं ने गंगा, यमुनाजी और सरस्वती नदी के संगम में डुबकी लगाई। इस अवसर पर सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र बने थे नागा साधु, जिन्होंने अपने विशिष्ट रूप और श्रद्धा से श्रद्धालुओं का ध्यान खींचा।

मकर संक्रांति के दिन अमृत स्नान का महत्व अत्यधिक है, और इसे लेकर श्रद्धालुओं में गहरी आस्था है। विशेष रूप से नागा साधु इस दिन गंगा स्नान करते हैं, जो उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। वे अपने शरीर पर भस्म और गहनों से सजे होते हैं और अक्सर अपने साथ त्रिशूल, डमरू जैसी पारंपरिक वस्तुएं रखते हैं।

नागा साधुओं की उपस्थिति के साथ-साथ, इस दिन का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी अलग था। महाकुम्भ में लाखों की संख्या में श्रद्धालु स्नान करने के लिए पहुंचे, जिनमें महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सभी शामिल थे। उनकी श्रद्धा और विश्वास ने इस आयोजन को और भी दिव्य बना दिया।

नागा साधु धार्मिक दृष्टिकोण से समाज के एक विशेष वर्ग से संबंधित होते हैं। वे संन्यासियों का एक प्रकार हैं, जिनका जीवन तप और साधना से जुड़ा हुआ होता है। इन साधुओं का मुख्य उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति है। मकर संक्रांति पर अमृत स्नान के दौरान इनका प्रदर्शन धार्मिक उत्सव का अभिन्न हिस्सा बन जाता है।

प्रयागराज में इस समय पवित्र संगम तट पर श्रद्धालुओं का जमावड़ा था, और हर जगह एक आध्यात्मिक वातावरण फैला हुआ था। प्रशासन ने भी महाकुम्भ के लिए पुख्ता सुरक्षा व्यवस्था की थी, ताकि सभी श्रद्धालु सुरक्षित और शांतिपूर्वक स्नान कर सकें।

धार्मिक आयोजनों के साथ-साथ, इस आयोजन ने भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं को भी दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। महाकुम्भ एक ऐसी धार्मिक और सांस्कृतिक मेला है, जो न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में श्रद्धा और एकता का प्रतीक माना जाता है।

नागा साधुओं का इस दिन में स्नान करना और उनका विशेष रूप में दिखना, एक अद्भुत दृश्य था, जिसने इस पवित्र अवसर को और भी खास बना दिया।

इस प्रकार, महाकुम्भ 2025 के पहले अमृत स्नान ने न केवल आध्यात्मिक आस्था को प्रगाढ़ किया, बल्कि भारत की धार्मिक संस्कृति को भी वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाई।

 

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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