Pahalgam Terror Attack Raises Questions: Does Terrorism Truly Have No Religion?
पहलगाम आतंकी हमले पर उठा सवाल: क्या वाकई आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता?
AIN NEWS 1: पिछले कुछ समय से आतंकवाद को लेकर एक बात बार-बार दोहराई जाती है कि “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता।” यह कथन सुनने में भले ही उदारवादी और इंसानियत से भरा लगे, लेकिन जब जमीनी हकीकत सामने आती है, तो यह कथन सवालों के घेरे में आ जाता है।
पहलगाम आतंकी हमला – एक झकझोर देने वाली घटना
हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में हुआ आतंकी हमला इस बयान को लेकर फिर से बहस छेड़ गया है। इस हमले में आतंकियों ने विशेष रूप से सामने वाला व्यक्ति किस धर्म से है। कथित तौर पर, पीड़ितों से पहले उनका नाम पूछा गया, फिर उनकी पहचान के आधार पर उन्हें निशाना बनाया गया।
घटना से जुड़े लोगों का कहना है कि हमलावरों ने सबसे नाम पूछकर धर्म की पुष्टि की और उसके बाद गोली मारी। कुछ रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया गया कि पीड़ितों के कपड़े उतरवाए गए ताकि उनकी धार्मिक पहचान को अंतिम रूप से जांचा जा सके।
क्या आतंकवाद अब पहचान से जुड़ा अपराध बनता जा रहा है?
यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि जब एक व्यक्ति से केवल उसके फल बेचने या खरीदने के लिए नाम पूछा जाता है, तो इसे सांप्रदायिकता कहा जाता है। लेकिन जब किसी की जान लेने से पहले नाम और धर्म की पहचान की जाती है, तो इस पर कोई चर्चा नहीं होती।
सत्य सनातन युवा वाहिनी का बयान
संगठन के संस्थापक अध्यक्ष मोहन लाल गौड़ ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, यह कहना अब सिर्फ एक ढकोसला रह गया है। जब आतंकी किसी को गोली मारने से पहले उसकी धार्मिक पहचान की पुष्टि करता है, तो यह सीधा-साधा धार्मिक पूर्वाग्रह और घृणा को दर्शाता है।”
उन्होंने आगे कहा, “अगर मरने वालों की सूची देखी जाए, तो उसमें धर्म स्पष्ट दिखता है। अब भी अगर कोई कहता है कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता, तो उसे आंखें खोलनी चाहिए।”
सवालों के घेरे में मानवता का नैतिक तर्क
इस घटना के बाद समाज में यह सवाल गहराता जा रहा है कि क्या हम अब भी आंखें मूंदकर “धर्मनिरपेक्ष आतंकवाद” जैसी अवधारणाओं पर विश्वास करते रहेंगे? या फिर अब वक्त आ गया है कि हम आतंकवाद की जड़ों को समझें, उसका असली चेहरा पहचानें और उसका नाम सही रूप में लें।
धर्म के आधार पर हिंसा किसी भी सभ्य समाज के लिए चिंता का विषय है। अगर आतंकवादी किसी खास धर्म के लोगों को निशाना बना रहे हैं, तो इसे नजरअंदाज करना न केवल नाइंसाफी है, बल्कि आने वाले समय में और अधिक घातक हो सकता है।
जनता की मांग – सच्चाई सामने आए
देशभर में इस हमले को लेकर आक्रोश है। सोशल मीडिया पर लोग पूछ रहे हैं – क्या मारे गए लोगों का धर्म जानने के बाद भी हमें चुप रहना चाहिए? क्या सिर्फ राजनीतिक शुद्धता के नाम पर हम सच्चाई पर परदा डालते रहेंगे?
कई यूजर्स ने यह भी पूछा कि अगर मारे गए लोगों की पहचान इतनी महत्वपूर्ण नहीं थी, तो आतंकियों ने गोली चलाने से पहले उनकी पहचान क्यों पूछी? यह सवाल सिर्फ सरकार या सुरक्षा एजेंसियों से नहीं, बल्कि पूरे समाज से है।
पहलगाम में हुआ आतंकी हमला न केवल एक सुरक्षा चूक है, बल्कि हमारे समाज की उस सोच को भी चुनौती देता है जो यह मानती है कि “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता”। जब तक हम इस कथन की सच्चाई और झूठ को पहचानकर आतंक के असली रूप का सामना नहीं करेंगे, तब तक इस तरह की घटनाएं दोहराई जाती रहेंगी।
The recent Pahalgam terror attack in Jammu & Kashmir has sparked a national debate on the sensitive question of whether terrorism has a religion. Eyewitness accounts suggest that victims were identified by name and faith before being shot, pointing to identity-based violence. This incident challenges the secular narrative and raises questions about the religious bias in terrorism. Organizations like Saty Sanatan Yuva Vahini have publicly demanded clarity and truth. As India continues to face such threats, understanding the role of religious discrimination in terrorism becomes crucial.