AIN NEWS 1: भारत में संपत्ति को लेकर विवाद आम हैं, खासकर जब माता-पिता अपनी संपत्ति को बांटने के लिए वसीयत बनाते हैं। कई बार वसीयत के माध्यम से कुछ वारिसों को कम और कुछ को ज्यादा हिस्सा दिया जाता है, जिससे परिवार में विवाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। सवाल उठता है कि क्या किसी वारिस को प्रॉपर्टी में बराबर का हिस्सा न मिलने पर वसीयत को रद्द करवाने का अधिकार है? क्या कानून इसके पक्ष में है? आइए इस लेख में विस्तार से समझते हैं वसीयत से जुड़े कानूनी प्रावधानों को।
1. वसीयत क्या है और क्यों बनाई जाती है?
वसीयत एक कानूनी दस्तावेज होता है जिसके माध्यम से कोई व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद अपनी संपत्ति किसे और कितनी देनी है, यह तय करता है। इसे बनाने वाला व्यक्ति “वसीयतकर्ता” कहलाता है। आमतौर पर लोग यह सोचकर वसीयत बनाते हैं कि भविष्य में उनके परिवार में संपत्ति को लेकर विवाद न हो। लेकिन कई बार वसीयत ही विवाद का कारण बन जाती है, जब किसी वारिस को लगता है कि उसे नाइंसाफी के साथ संपत्ति से वंचित कर दिया गया है।
2. क्या हर कोई वसीयत बना सकता है?
जी हां, भारत में कोई भी व्यक्ति जो बालिग है (18 वर्ष से अधिक उम्र) और मानसिक रूप से स्वस्थ है, वह वसीयत बना सकता है। यह वसीयत लिखित रूप में होनी चाहिए और इसमें गवाहों के हस्ताक्षर भी होने चाहिए। हालांकि यह जरूरी नहीं है कि वसीयत रजिस्टर्ड हो, बिना रजिस्टर्ड वसीयत भी वैध मानी जा सकती है।
3. वसीयत को कब और कैसे चुनौती दी जा सकती है?
अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि वसीयत के जरिये उसके साथ अन्याय हुआ है या वसीयत फर्जी तरीके से बनाई गई है, तो वह उसे कोर्ट में चुनौती दे सकता है। इसके लिए व्यक्ति को भारतीय उत्तराधिकारी अधिनियम, 1925 (Indian Succession Act, 1925) के अंतर्गत मुकदमा दायर करना होता है।
4. किन आधारों पर वसीयत को चुनौती दी जा सकती है?
वसीयत को निम्नलिखित आधारों पर कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है:
वसीयत दबाव, धमकी या डर के तहत बनाई गई हो।
वसीयत बनाने वाले की मानसिक स्थिति ठीक न रही हो।
वसीयत में फर्जी हस्ताक्षर या दस्तावेज का इस्तेमाल किया गया हो।
वसीयत में किसी एक वारिस को जानबूझकर पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया हो।
वसीयत में गवाहों के हस्ताक्षर न हों या वे संदिग्ध हों।
5. रजिस्टर्ड बनाम अनरजिस्टर्ड वसीयत में क्या फर्क होता है?
कानूनी तौर पर रजिस्टर्ड और अनरजिस्टर्ड दोनों वसीयत मान्य होती हैं। लेकिन रजिस्टर्ड वसीयत को चुनौती देना थोड़ा कठिन होता है क्योंकि वह सबूत के रूप में मजबूत मानी जाती है। इसके विपरीत, अनरजिस्टर्ड वसीयत को कोर्ट में चुनौती देना अपेक्षाकृत आसान होता है, खासकर जब उसमें कुछ कानूनी खामियां पाई जाएं।
6. वसीयत को चुनौती देने की प्रक्रिया क्या है?
कानूनी सलाह लें: सबसे पहले आपको किसी योग्य वकील से सलाह लेनी चाहिए जो वसीयत मामलों में विशेषज्ञता रखता हो।
कोर्ट में केस दाखिल करें: आपको संबंधित सिविल कोर्ट में वसीयत को चुनौती देते हुए एक केस दायर करना होगा।
साक्ष्य जुटाएं: अगर आप यह दावा करते हैं कि वसीयत दबाव में या फर्जी तरीके से बनाई गई है, तो आपको इसके लिए ठोस सबूत देने होंगे।
गवाह पेश करें: जिन लोगों ने वसीयत बनते समय गवाही दी थी, उन्हें कोर्ट में बुलाकर उनसे पूछताछ की जा सकती है।
जजमेंट: कोर्ट सभी पक्षों की दलीलें और साक्ष्य देखने के बाद फैसला करता है कि वसीयत वैध है या नहीं।
7. अगर वसीयत रद्द हो जाती है तो क्या होता है?
अगर कोर्ट किसी वसीयत को रद्द कर देता है, तो संपत्ति का बंटवारा भारतीय उत्तराधिकार कानूनों के अनुसार किया जाता है। यानी मृतक की संपत्ति उसके कानूनी वारिसों के बीच समान रूप से बांटी जाती है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, मुस्लिम पर्सनल लॉ या ईसाई उत्तराधिकार कानून के अनुसार बंटवारे की प्रक्रिया होती है, जो कि संबंधित व्यक्ति के धर्म पर निर्भर करती है।
8. वसीयत को बदलने या रद्द करने का अधिकार किसे होता है?
जब तक वसीयतकर्ता जीवित है, वह अपनी वसीयत को किसी भी समय बदल सकता है या रद्द कर सकता है। लेकिन उसकी मृत्यु के बाद वसीयत को केवल कानूनी प्रक्रिया के जरिए ही चुनौती दी जा सकती है।
9. क्या सभी वारिसों को समान हिस्सा मिलना जरूरी है?
नहीं, वसीयतकर्ता को यह अधिकार होता है कि वह अपनी संपत्ति को अपनी मर्जी से किसी को भी दे सकता है। लेकिन अगर यह साबित हो जाए कि उसने ऐसा दबाव में किया या किसी को जानबूझकर नजरअंदाज किया, तो वसीयत अवैध घोषित हो सकती है।
वसीयत एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि वह अंतिम सत्य हो। अगर किसी व्यक्ति को लगता है कि उसे जानबूझकर संपत्ति से वंचित किया गया है या वसीयत फर्जी है, तो वह कोर्ट का सहारा लेकर अपने हक की लड़ाई लड़ सकता है। इसके लिए सबूत और कानूनी सलाह जरूरी है। ऐसे मामलों में भारतीय उत्तराधिकारी कानून, 1925 और अन्य संबंधित नियमों का पालन करना आवश्यक होता है।
If you’re facing unequal property distribution due to a will in India, it’s essential to understand your legal rights under the Indian Succession Act, 1925. Property disputes often arise within families where wills are used to transfer assets unequally. This article explores how to challenge a property will, the difference between registered and unregistered wills, and what legal remedies are available if you suspect fraud or coercion. Learn everything you need to know about will cancellation law in India and protecting your property rights as a legal heir.