Sambhal 1986 Riots: Victim’s Son Supports Ban on Neja Mela, Shares Heart-Wrenching Story
संभल 1986 दंगे: पीड़ित के बेटे ने नेजा मेले पर पाबंदी का किया समर्थन, सुनाई दर्दनाक आपबीती
AIN NEWS 1: उत्तर प्रदेश के संभल में सैयद सालार मसूद गाजी की याद में लगने वाले नेजा मेले को प्रशासन ने रोक दिया है। यह फैसला उस 1986 के दंगे की भयावह यादों के चलते किया गया है, जब गलत अफवाहों ने भयानक हिंसा को जन्म दिया था। इस दंगे में कई हिंदू परिवारों को जान-माल का नुकसान हुआ था, जिनमें से एक था भगवत शरण रस्तोगी का परिवार।
कैसे भड़का 1986 का दंगा?
6 अप्रैल 1986 को नेजा मेले के दौरान एक अफवाह फैली कि दो मुस्लिम व्यक्तियों की हत्या कर दी गई है। इस अफवाह से माहौल अचानक गरमा गया और हिंसा भड़क उठी। कुछ ही देर में पूरा बाजार बंद हो गया, लोग इधर-उधर भागने लगे, और हालात अघोषित कर्फ्यू जैसे हो गए। इसी दौरान भगवत शरण रस्तोगी अपनी दुकान पर थे, जब हिंसक भीड़ ने हमला कर दिया।
निर्मम हत्या और लाश के साथ बर्बरता
रस्तोगी को दुकान के अंदर ले जाकर बेरहमी से मार दिया गया। बाद में उनकी लाश तश्तपुर गांव में एक बोरे में बंद मिली। जब शव की जांच हुई, तो जो विवरण सामने आए, वे दिल दहला देने वाले थे –
चेहरे पर आरी से काटे गए 54 निशान
आंखें निकाल ली गई थीं
कान काट दिए गए थे
शव की हालत इतनी खराब थी कि पहचान पाना मुश्किल हो गया
पोस्टमार्टम संभल के सरकारी अस्पताल में हुआ, क्योंकि शव को मुरादाबाद ले जाना संभव नहीं था। इस खबर के बाद परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।
पीड़ित परिवार की पीड़ा
भगवत शरण रस्तोगी के बेटे राष्ट्रबंधु रस्तोगी ने बताया कि पिता की मौत के सदमे से उनकी माँ को पैरालिसिस हो गया, जिससे वे 20 साल तक पीड़ित रहीं। परिवार आर्थिक संकट से जूझता रहा और सालों तक न्याय की तलाश में भटकता रहा। लेकिन अंततः आरोपी बरी हो गए, और कोई न्याय नहीं मिला।
नेजा मेले पर क्यों उठे सवाल?
अब, जब प्रशासन ने नेजा मेले पर प्रतिबंध लगाया है, तो राष्ट्रबंधु रस्तोगी ने इस फैसले का समर्थन किया है। उनका कहना है –
“मेला भाईचारे और सद्भावना का प्रतीक होता है, लेकिन अगर किसी मेले से हिंसा, हत्या और तबाही हो, तो उसे बैन कर देना ही बेहतर है।”
राष्ट्रबंधु ने हाल ही में 1986 दंगा मामले के न्यायिक आयोग के सामने अपना बयान भी दर्ज कराया और अपनी पूरी आपबीती साझा की।
क्या नेजा मेले का आयोजन सही है?
नेजा मेला एक ऐतिहासिक आयोजन रहा है, लेकिन 1986 की हिंसा के बाद यह विवादों में रहा है। प्रशासन ने इस बार शांति और सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए इसे न होने देने का फैसला लिया है।
1986 का संभल दंगा इतिहास के उन काले पन्नों में से एक है, जिसे याद कर लोग आज भी सिहर उठते हैं। नेजा मेले को लेकर समाज दो धड़ों में बंटा हुआ है – कुछ इसे धार्मिक आयोजन मानते हैं, तो कुछ इसे संभावित खतरे के रूप में देखते हैं। लेकिन पीड़ित परिवार के लिए यह मेला उनके जीवन की सबसे बड़ी त्रासदी का प्रतीक बन चुका है।
The 1986 Sambhal riots during Neja Mela were triggered by a false rumor, leading to brutal communal violence. One of the victims, Bhagwat Sharan Rastogi, was murdered mercilessly, with his body found mutilated. His son, Rashtrabandhu Rastogi, has come forward to support the ban on Neja Mela, stating that any event leading to riots and loss of innocent lives should be prohibited. The Neja fair controversy has reignited debates on communal harmony and public safety in Uttar Pradesh.