AIN NEWS 1 | अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत में नया राजदूत नियुक्त किया है। यह जिम्मेदारी उनके करीबी सहयोगी सर्जियो गोर को सौंपी गई है। भारत सरकार ने इस फैसले का स्वागत किया है, हालांकि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने केवल इतना कहा – “मैंने इसके बारे में पढ़ा है।” यह बयान उन्होंने एक कार्यक्रम के दौरान पत्रकारों के सवाल पर दिया।
सीनेट की मंजूरी का इंतजार
हालांकि सर्जियो गोर की नियुक्ति को अभी अमेरिकी सीनेट से मंजूरी मिलनी बाकी है। लेकिन ट्रंप के विश्वसनीय सहयोगी होने के कारण माना जा रहा है कि गोर दोनों देशों के बीच सीधे संवाद को बढ़ावा देंगे। इससे व्यापार, पाकिस्तान नीति, इमिग्रेशन और भारत-रूस संबंध जैसे अहम मुद्दों पर खुली चर्चा की संभावना बढ़ेगी।
रिपोर्ट्स के अनुसार, राष्ट्रपति ट्रंप नवंबर में भारत में होने वाले क्वाड (Quad) शिखर सम्मेलन में शामिल हो सकते हैं। हालांकि, भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने की धमकी रिश्तों में तनाव भी पैदा कर सकती है।
दक्षिण और मध्य एशिया के विशेष दूत भी बने
सर्जियो गोर को अमेरिका ने दक्षिण और मध्य एशिया का विशेष दूत (Special Envoy) भी नियुक्त किया है। इसे लेकर भारत में हल्की चिंता जताई जा रही है कि अमेरिका कहीं भारत-पाकिस्तान मामलों में अनावश्यक दखल न दे। अभी तक भारत सरकार ने इस पर कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है और इंतजार कर रही है कि गोर की भूमिका को लेकर अमेरिका की मंशा स्पष्ट हो।
भारत की चिंताएं
भारत की सबसे बड़ी चिंता यह है कि अमेरिका, भारत और पाकिस्तान को अक्सर एक ही नजर से देखता है। भारत का मानना है कि इससे आतंकी हमलावर और पीड़ित के बीच का अंतर मिट जाता है। हाल ही में पहलगाम आतंकी हमला और ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत और ज्यादा सतर्क हो गया है।
ट्रंप के मध्यस्थता के दावे
डोनाल्ड ट्रंप कई बार दावा कर चुके हैं कि उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर में भूमिका निभाई। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ कहा कि न तो कोई व्यापार समझौता हुआ है और न ही किसी तरह की अमेरिकी मध्यस्थता स्वीकार की गई है। विदेश मंत्री जयशंकर ने भी दोहराया कि यह समझौता केवल भारत और पाकिस्तान के बीच सीधे संवाद से हुआ था।
भारत का साफ रुख – कोई मध्यस्थता नहीं
भारत पहले भी अमेरिका की ओर से कश्मीर या पाकिस्तान मुद्दे पर मध्यस्थता की कोशिशों का विरोध करता रहा है। 2009 में भी भारत ने ओबामा प्रशासन को पीछे हटने पर मजबूर किया था, जब रिचर्ड होलब्रुक को अफ-पाक क्षेत्र का दूत बनाया गया था।
जयशंकर ने साफ शब्दों में कहा – “पिछले 50 साल से भारत की नीति स्पष्ट है कि पाकिस्तान के साथ रिश्तों में किसी भी तरह की बाहरी मध्यस्थता स्वीकार नहीं होगी।” भारत चाहता है कि अमेरिका उसके साथ मजबूत साझेदारी बनाए, लेकिन उसकी नीतियों और संप्रभुता का सम्मान भी करे।



















