AIN NEWS 1 | शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने केंद्र सरकार और संसद भवन को लेकर एक खास मांग उठाई है, जो देशभर में चर्चा का विषय बन गई है।
3 अगस्त 2025, रविवार को मीडिया से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि नए संसद भवन के उद्घाटन में एक जीवित गाय को भी शामिल किया जाना चाहिए था। उनका मानना है कि गाय को संसद भवन में ले जाकर उसका आशीर्वाद लेना राष्ट्र और प्रधानमंत्री दोनों के लिए शुभ होता।
“गाय की मूर्ति जा सकती है तो असली गाय क्यों नहीं?”
अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि जब संसद भवन में गाय की आकृति वाला सेंगोल (राजदंड) ले जाया जा सकता है, तो फिर एक सजीव गाय को अंदर ले जाने में आपत्ति क्यों?
उन्होंने स्पष्ट कहा:
“जब मूर्ति जा सकती है तो सजीव गाय को क्यों नहीं ले जाया गया? अगर सरकार तैयार नहीं है, तो हम खुद देशभर से गायों को लाकर संसद में लाएंगे।”
उनका यह बयान धार्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं को लेकर काफी गंभीरता से लिया गया है।
नए संसद भवन और सेंगोल का संदर्भ
सेंगोल एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक प्रतीक है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन के उद्घाटन के समय धारण किया था। यह सेंगोल तमिल परंपरा में सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक माना जाता है, और इस पर गाय की आकृति उकेरी गई थी।
शंकराचार्य ने कहा कि जब सेंगोल पर ही गाय की छवि है, तो फिर गाय की वास्तविक उपस्थिति क्यों नहीं हो सकती थी?
उनका मानना है कि इस प्रतीक को सिर्फ दृश्य नहीं, सजीव रूप में भी संसद तक पहुंचाना चाहिए था।
“प्रधानमंत्री को असली गाय का आशीर्वाद मिलना चाहिए”
शंकराचार्य ने जोर देकर कहा कि:
संसद भवन जैसे पवित्र स्थान पर एक जीवित गाय का प्रवेश पारंपरिक आशीर्वाद और शुद्धता का प्रतीक होता।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गाय से सजीव रूप में आशीर्वाद मिलना चाहिए था।
उन्होंने यह भी कहा कि यदि यह अब तक नहीं हुआ, तो देशभर से गायों को लाकर संसद तक पहुंचाया जाएगा।
गौ-सम्मान के लिए प्रोटोकॉल की मांग
महाराष्ट्र सरकार को संबोधित करते हुए अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि गाय के सम्मान को लेकर सरकार को एक नियमित प्रोटोकॉल जारी करना चाहिए:
यह स्पष्ट होना चाहिए कि गाय का आदर कैसे किया जाए।
इसका लिखित स्वरूप सार्वजनिक किया जाए, ताकि लोगों को दिशा मिले।
इस प्रोटोकॉल के उल्लंघन पर कानूनी दंड भी निर्धारित किया जाए।
हर विधानसभा क्षेत्र में बने ‘रामधाम’
धर्म और संस्कृति की मजबूती के लिए शंकराचार्य ने एक और अहम सुझाव रखा:
“हर विधानसभा क्षेत्र में एक रामधाम होना चाहिए, जिसमें कम से कम 100 गायों की गौशाला हो।”
यह स्थान न केवल धार्मिक केंद्र होगा, बल्कि गौसेवा, ग्रामीण आजीविका और पारंपरिक कृषि से भी जुड़ा रहेगा।
गाय को ‘राष्ट्रमाता’ घोषित करने की मांग
धर्म संसद ने होशंगाबाद के सांसद दर्शन सिंह चौधरी के प्रस्ताव का समर्थन किया है जिसमें गाय को ‘राष्ट्रमाता’ का दर्जा देने की बात कही गई है।
शंकराचार्य ने इस प्रस्ताव का स्वागत करते हुए कहा कि यह देश की सनातन संस्कृति और कृषि आधारित जीवनशैली को सम्मान देने का मार्ग होगा।
भाषा और संस्कृति पर विचार
हिंदी और मराठी भाषा पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि:
हिंदी कई क्षेत्रीय बोलियों का समावेश करती है।
मराठी भी एक समृद्ध भाषा है, लेकिन वह भी अन्य बोलियों से समन्वित है।
भाषाई विविधता का सम्मान करते हुए हिंसा के किसी भी रूप को अस्वीकार्य बताया।
मालेगांव विस्फोट मामले पर भी प्रतिक्रिया
उन्होंने मालेगांव ब्लास्ट केस को लेकर न्याय की मांग की।
उन्होंने कहा कि असल दोषियों को सजा मिले, ताकि निर्दोषों को न्याय मिल सके और समाज में विश्वास बना रहे।
Shankaracharya Avimukteshwarananda sparked a national debate by stating that a real cow should have been brought into the new Parliament building during its inauguration. Referring to the presence of the Sengol with a cow figure, he questioned why a live cow wasn’t welcomed. He emphasized the spiritual and traditional value of receiving blessings from a living cow and called for a cow respect protocol by the Maharashtra government. The religious leader also demanded Ramdham Gaushalas in every assembly constituency and supported the proposal to declare the cow as ‘Rashtra Mata’. He highlighted the significance of language, peace, and justice in modern India.



















