Friday, October 18, 2024

भागवत कथा का छठा दिवस: भक्ति और संगीत का अद्भुत संगम?

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AIN NEWS 1: शिप्रा सनसिटी में भारतीय धरोहर संस्था द्वारा आयोजित श्रीमद भागवत कथा के छठे दिन कथाव्यास श्री पवन नंदन जी ने भक्तों को महारास लीला, कंस वध, रुक्मिणी विवाह, और द्वारका स्थापना जैसे प्रमुख प्रसंगों से आनंदित किया। इस दिन के आयोजन में पूज्य संत एवं प्रसिद्ध राम कथा वाचक श्री विजय कौशल जी का आशीर्वाद भक्तों के लिए विशेष रहा।

कथा का सारांश

कथाव्यास पवन नंदन जी ने बताया कि महारास में पांच अध्याय होते हैं, जिनमें गाए जाने वाले पंच गीत भागवत के पंच प्राण हैं। जो भी श्रद्धालु ठाकुरजी के इन गीतों को भावपूर्वक गाता है, वह भव पार कर वृंदावन की भक्ति को सहज रूप से प्राप्त कर लेता है।

इस दिन की कथा में भगवान का मथुरा प्रस्थान, कंस का वध, महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या ग्रहण करना, कालयवन का वध, उधव-गोपी संवाद, ऊधव द्वारा गोपियों को गुरु मानना, द्वारका की स्थापना, और रुक्मणी विवाह के प्रसंगों का संगीतमय और भावपूर्ण पाठ किया गया।

भक्तिमय संगीत का प्रभाव

कथा के दौरान भक्तिमय संगीत ने श्रोताओं को आनंदित किया। कथावाचक ने बताया कि जो भक्त प्रेम से कृष्ण-रुक्मणी के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं, उनकी वैवाहिक समस्याएं सदा के लिए समाप्त हो जाती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जीव परमात्मा का अंश हैं, और जब जीव में अभिमान आता है, तब भगवान उनसे दूर हो जाते हैं।

लीला और क्रिया का अंतर

कथाव्यास ने बताया कि लीला और क्रिया में महत्वपूर्ण अंतर है। अभिमान और सुखी रहने की इच्छा को प्रक्रिया कहते हैं, जबकि दूसरों को सुखी रखने की इच्छा को लीला कहते हैं। जब कोई जीव भगवान को न पाकर विरह में होता है, तब श्रीकृष्ण उस पर अनुग्रह करते हैं और उसे दर्शन देते हैं।

आयोजन का सहयोग

इस भव्य आयोजन की व्यवस्था में प्रमुख रूप से कपिल त्यागी, अजय शुक्ला, धर्मेंद्र सिंह, सुचित सिंघल, सीपी बालियान, उमा शंकर तोमर, मनोज डागा, पार्षद धीरज अग्रवाल, पार्षद संजय सिंह, सुरेंद्र अरोड़ा, अनिल मेहंदीरत्ता, राम वरुण सिंह, नीरज त्यागी आदि ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सभी भक्तों के लिए प्रसाद की व्यवस्था भी की गई।

इस प्रकार, छठे दिन की भागवत कथा ने भक्ति और संगीत के अद्भुत संगम के साथ भक्तों के हृदय को छू लिया। सभी भक्त इस दिव्य अनुभव को अपने जीवन में अमिट छाप के रूप में संजोएंगे।

 

 

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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