AIN NEWS 1: सुप्रीम कोर्ट ने एक पिता द्वारा दायर Habeas Corpus याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसकी दो बेटियां ईशा योग केंद्र में कैद हैं और वहां उनका ब्रेनवॉश किया जा रहा है।
याचिका में पिता ने दावा किया था कि उसकी बेटियां, जिनकी आयु क्रमशः 39 और 42 वर्ष है, अपनी मर्जी से नहीं रह रही हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों के द्वारा दिए गए बयान पर ध्यान दिया, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि वे पूरी तरह से स्वतंत्र हैं और अपनी इच्छा से आश्रम में रह रही हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि बेटियां अपनी इच्छा से आश्रम छोड़ने के लिए स्वतंत्र हैं। इस स्थिति को देखते हुए, कोर्ट ने कहा कि Habeas Corpus प्रक्रिया को बंद कर दिया जाना चाहिए और आगे किसी दिशा-निर्देश की आवश्यकता नहीं है।
कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि Habeas Corpus मामलों की समाप्ति का ईशा योग केंद्र पर किसी अन्य नियामकीय अनुपालन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यह निर्णय इस बात को रेखांकित करता है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आत्म-निर्णय का अधिकार कितना महत्वपूर्ण है।
यह मामला एक महत्वपूर्ण उदाहरण है कि कैसे अदालतें व्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा करती हैं, विशेषकर तब जब व्यक्ति वयस्क हो और अपनी इच्छाओं के अनुसार जीवन जीने का अधिकार रखता हो। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि कोई बाहरी दबाव या परिवारिक विवाद इस तरह की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय यह संकेत देता है कि यदि कोई व्यक्ति स्वतंत्रता से जीने की इच्छा रखता है, तो उसके फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए। यह मामला न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता की बात करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि कोई व्यक्ति यह महसूस न करे कि उसके अधिकारों का हनन हो रहा है।
अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान संतोषजनक समाधान प्रदान किया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि सभी वयस्क व्यक्तियों को अपनी जिंदगी जीने का अधिकार है और किसी भी तरह का अवरोध इस अधिकार का उल्लंघन है। यह निर्णय समाज में मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के प्रति अदालतों की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है।