AIN NEWS 1 | उत्तर प्रदेश की राजनीति में इस समय मतदाता सूची की गड़बड़ियों को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। अब सिर्फ विपक्ष ही नहीं बल्कि सत्ता पक्ष के नेता भी इस मुद्दे पर खुलकर बोलने लगे हैं। यूपी सरकार में समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण ने दावा किया है कि कन्नौज लोकसभा चुनाव के दौरान मतदाता सूची में व्यापक अनियमितताएं सामने आईं, जिनका सीधा नुकसान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को और फायदा समाजवादी पार्टी (सपा) को हुआ।
कन्नौज में पत्रकारों से बातचीत के दौरान असीम अरुण ने कहा कि हालिया लोकसभा चुनाव में हर बूथ पर 10 से 15 भाजपा समर्थकों के वोट गलत तरीके से काट दिए गए। उन्होंने इस मामले की शिकायत चुनाव आयोग से भी की है।
मतदाता सूची पर उठाए सवाल
असीम अरुण ने कहा कि मतदाता सूची चुनाव प्रक्रिया की सबसे कमजोर कड़ी बन चुकी है। इसे सुधारने के लिए बूथ लेवल ऑफिसर (बीएलओ) की कार्यशैली में सुधार बेहद जरूरी है।
उनका आरोप है कि भाजपा समर्थकों के वोट काटकर विपक्षी दलों, खासकर अखिलेश यादव को लाभ पहुंचाया गया। उन्होंने यह भी कहा कि कन्नौज में उनके अपने विधानसभा चुनाव के दौरान भी वोट काटे गए थे, जिससे विरोधियों को सीधा फायदा हुआ।
कांग्रेस और सपा पर हमला
मंत्री असीम अरुण ने कांग्रेस और समाजवादी पार्टी पर भी निशाना साधा। उन्होंने बताया कि चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों से मतदाता सूची सुधार को लेकर सुझाव मांगे थे।
भाजपा की ओर से 300 से अधिक सुझाव दिए गए।
लेकिन कांग्रेस और सपा समेत अन्य विपक्षी दलों ने एक भी सुझाव नहीं दिया।
असीम अरुण ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी और अखिलेश यादव सिर्फ बयानबाजी करते हैं, लेकिन मतदाता सूची की खामियों को दूर करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाते।
क्या है मंत्री का सुझाव?
असीम अरुण ने सुझाव दिया कि नगर निगम और पंचायत की अलग-अलग मतदाता सूचियों को एकीकृत किया जाना चाहिए और इन्हें आधार कार्ड से जोड़ना चाहिए। इससे एक ही व्यक्ति का नाम कई सूचियों में दर्ज होने या किसी नाम के गायब होने जैसी गड़बड़ियों को दूर किया जा सकता है।
बिहार के SIR मॉडल की तारीफ
असीम अरुण ने बिहार में शुरू किए गए सिस्टमैटिक आइडेंटिफिकेशन ऑफ रजिस्ट्रेशन (SIR) की तारीफ की। उन्होंने कहा कि इस सिस्टम से मतदाता सूची में पारदर्शिता आती है और गड़बड़ियों की संभावना कम होती है।
उन्होंने जोर देकर कहा कि यूपी में भी इसी तरह के मॉडल को लागू किया जाना चाहिए, ताकि चुनावी प्रक्रिया और ज्यादा पारदर्शी बने।
मतदाता सूची क्यों है सबसे बड़ा सवाल?
भारत में चुनाव प्रक्रिया को निष्पक्ष बनाने के लिए मतदाता सूची की सटीकता बेहद जरूरी है। अगर इसमें गड़बड़ी होती है तो नतीजे भी प्रभावित होते हैं।
विपक्षी दल लंबे समय से आरोप लगाते रहे हैं कि मतदाता सूची में धांधली होती है।
अब सत्ता पक्ष के मंत्री का बयान आने के बाद इस मुद्दे ने और तूल पकड़ लिया है।
अगर सरकार और चुनाव आयोग गंभीरता से सुधार करें, तो भविष्य में इस तरह के विवादों से बचा जा सकता है।
कन्नौज की हाई-प्रोफाइल सीट पर भाजपा मंत्री असीम अरुण का बयान यूपी की राजनीति को नई दिशा दे सकता है। उनका आरोप है कि मतदाता सूची में गड़बड़ी करके भाजपा समर्थकों के वोट काटे गए और विपक्ष को फायदा पहुंचाया गया। उन्होंने इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए बीएलओ की कार्यशैली में सुधार, मतदाता सूची को आधार से जोड़ने और बिहार के SIR मॉडल को अपनाने की बात कही।
अब देखना यह होगा कि चुनाव आयोग और सरकार इस पर क्या कदम उठाते हैं, क्योंकि अगर मतदाता सूची की पारदर्शिता पर सवाल उठते रहे, तो लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत – जनता का वोट – ही संदेह के घेरे में आ जाएगा।