Saturday, January 4, 2025

जमीयत ने UCC के विरोध में प्रस्ताव किया पेश व मदनी बोले- शरियत में दखलअंदाजी बर्दाश्त नहीं

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उत्तर प्रदेश के देवबंद में चल रहे जमीयत उलेमा ए हिंद के जलसा का आज दूसरा दिन आखिरी दिन था. जमीयत ने अपने देवबंद अधिवेशन में ‘समान नागरिक संहिता’ का विरोध में प्रस्ताव दिया . इस दौरान उलेमा बोले कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में बदलाव मंजूर नहीं है, इसका कड़ा विरोध दर्ज होगा . शरियत में किसी तरह दखलंदाजी स्वीकार नहीं की जाएगी.  मौलाना महमूद मदनी ने कहा, ‘मुझसे कहा जाता है कि मैं सबसे ज्यादा जहर उगलता हूं. मुझसे सवाल पूछे जा रहे हैं. लेकिन जो मेरी तरह जहर उगल रहे हैं उनके बारे में कुछ नही कहा जा रहा है.’ उन्होंने कहा कि हमारे वजूद खत्म करने के प्रयास किए जा रहे हैं. हम इस देश में दूसरी सबसे बड़ी जाति बने हैं. इस राष्ट्र की सुरक्षा- रक्षा के लिए हम लोग अक्सर आगे आएंगे. किसी को अगर हमारा मजहब बर्दाश्त नहीं है तो वो कहीं और चले जाओ. हमको मौका मिला था पाकिस्तान जाने का. लेकिन हम नहीं गए जबके जा सकते थे . बात-बात पर पाकिस्तान भेजने वाले खुद पाकिस्तान चले जाएं.मदनी ने यूनिफार्म सिविल कोड पर बात करते हुए कहा हम , ‘इस पर भी हमने तजबीज लाई है. महीनों की मशक्कत के बाद यह तैयार हुआ है. कानून कोई भी बन जाये अगर मुस्लिम शरीयत पर जिस दिन चलने लगा तो कोई कानून नहीं रोक सकता है. हमारे इंटरनल क्राइसिस हैं. हमें उस पर भी बहुत काम करने की जरूरत है.उन्होंने आगे कहा, ‘लोग कहेंगे, लोग लिखेंगे. उन्हें कहने दीजिए, हमें फर्क नहीं,लिखने दीजिए, जो दुश्मनी कर रहा है वो लायक ही नहीं है दोस्ती के . अगर वो इस्लाम को पहचान ले तो दुश्मनी नहीं करेगा पक्का . हर चीज पर समझौता हो सकता है. लेकिन पॉलिसी पर समझौता नहीं होगा, जो आइडियोलॉजी हमें मिली है हम उस पर समझौता नहीं होगा. हम अगर राष्ट्र एकता की बात करते हैं तो वो हमारा अभी भी अज्म है. अगर देश की हिफाजत के लिए हमारा खून बहेगा तो हमें खुशी होगी बिलकुल .जमीअत उलेमा-ए-हिंद की तरफ से इस जलसा में कहा गया कि बनारस मे ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की एतिहासिक ईदगाह और अन्य मस्जिदों के खिलाफ इस समय ऐसे अभियान जारी हैं जो आप देख रहे, जिनसे देश में अमन शांति और उसकी गरिमा और अखंडता को नुकसान पहुंचा है अगर . उलेमा सत्ता में बैठे लोगों को बता देना चाहती है कि इतिहास के मतभेदों को बार बार जीवित करना देश में शांति और सद्भाव कायम के लिए हरगिज उचित नहीं है. खुद सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद फैसले में ’पूजा स्थल कानून 1991 एक्ट 42’ को संविधान के मूल ढ़ांचे की असली आत्मा बताया आपने देखा है. इसमें यह संदेश मौजूद है कि सरकार, राजनीतिक दल और किसी धार्मिक वर्ग को इस तरह के मामलों में अतीत के गड़े मुर्दों को उखाडने से क्या मिलेगा , तभी संविधान का अनुपालन करने की शपथों और वचनों का पालन होगा, नहीं तो यह संविधान के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात होगा.

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सत्यमेव जयते नानृतं सत्येन पन्था विततो देवयानः।
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