AIN NEWS 1 नई दिल्ली : जैसा कि आप जानते है हर परिवार में संपत्ति को लेकर अक्सर विवाद हो ही जाते हैं. कभी या विवाद भाई-बहन के बीच तो कभी भाइयों में भी पैतृक संपत्ति को लेकर आपस में ही ठन जाती है. जब तक परिवार के मुखिया यानी माता-पिता जीवित रहते हैं तब तक तो घरों में प्रॉपर्टी को लेकर विवाद की स्थिति नहीं बनती है लेकिन अक्सर उनके देहांत के बाद अधिकतर पारिवारिक संपत्ति को लेकर भाई-बहनों या भाइयों में विवाद होने ही लगते हैं. हालांकि, इस तरह के हालात किसी घर में ना पैदा हो इसलिए माता-पिता जीवित रहते हुए ही अपने बच्चों के बीच संपत्ति का बंटवारा करा देते हैं.और अगर परिवार का मुखिया जीवित रहते हुए संपत्ति का बंटवारा नहीं कर पाए, तो उनके देहांत के बाद ही प्रॉपर्टी का बंटवारा कैसे हो और उसे लेकर आख़िर क्या नियम हैं. आज हम आपको बताते हैं.

जान ले हिंदू-मुस्लिम में संपत्ति बंटवारे पर अलग-अलग है नियम

हमारे देश में संपत्ति पर अधिकार को लेकर हिंदू और मुस्लिम धर्म में अलग-अलग तरह के नियम हैं. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम,1956 में बेटे और बेटी दोनों को पिता की संपत्ति पर बराबर का अधिकार माना जाता है. इस अधिनियम में यह साफ़ साफ़ बताया गया है कि जब किसी हिन्दू व्यक्ति की मृत्यु बिना वसीयत बनाए ही हो जाती है, तो उस व्यक्ति की सम्पत्ति को उसके उत्तराधिकारियों, परिजनों या सम्बन्धियों में कानूनी रूप से किस तरह से बांटी जाएगी.

जाने आख़िर क्या है हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम,1956 के तहत ही अगर संपत्ति के मालिक यानी पिता या परिवार के मुखिया की मृत्यु बिना किसी वसीयत बनाए हो जाती है तो उस संपत्ति को क्लास-1 के उत्तराधिकारियों (बेटा, बेटी, विधवा, मां, पूर्ववर्ती बेटे का बेटा आदि) दिया जाता है. क्लास 1 में उल्लेखित उत्तराधिकारियों के नहीं होने की स्थिति में ही प्रॉपर्टी क्लास 2 ( बेटे की बेटी का बेटा, बेटे की बेटी की बेटी, भाई, बहन) के वारिस को दिए जाने का एक पूरा प्रावधान है. बता दें कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में बौद्ध, जैन और सिख समुदाय आदी भी शामिल हैं.बता दें कि अपनी पैतृक संपत्ति को लेकर पिता कोई फैसले लेने के लिए स्वतंत्र नहीं है इसलिए ही प्रॉपर्टी पर बेटे और बेटी दोनों को बराबर अधिकार मिले हुए हैं. जान ले पहले हमारे देश में बेटी को प्रॉपर्टी में बराबर के अधिकार प्राप्त नहीं थे, लेकिन 2005 में उत्तराधिकार अधिनियम में हुए काफ़ी महत्वपूर्ण संशोधन के बाद बेटियों को पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर के अधिकार दिए गए हैं.और किसी भी संपत्ति का बंटवारा किए जाने से पहले ही उस पर दावा करने वालों को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रॉपर्टी पर कोई बकाया कर्ज या अन्य प्रकार का कोई लेन-देन संबंधी बकाया तो नहीं है. वहीं, किसी प्रकार के पैतृक संपत्ति विवाद या अन्य मामलों के लिए आपकों कानूनी सलाहकारों की मदद लेनी चाहिए, ताकि कानून के दायरे में रहकर शांतिपूर्ण तरीके से ही पारिवारिक विवादों का पूर्ण समाधान हो सके.

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