AIN NEWS 1 इलाहाबाद, 25 जून 2025 — उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री मोहम्मद आज़म खान को 2016 की चर्चित जबरन बेदखली मामले में आज इलाहाबाद हाईकोर्ट से महत्वपूर्ण राहत मिली है। कोर्ट ने उनकी याचिका को उनके सह-आरोपियों की पहले से लंबित याचिका से जोड़ दिया है। अब इस पूरे मामले की सुनवाई 3 जुलाई 2025 को एकसाथ की जाएगी।
क्या है मामला?
2019-20 में रामपुर के कोतवाली थाने में आज़म खान और अन्य पर डकैती, जबरन घर में घुसने और आपराधिक षड्यंत्र जैसे गंभीर आरोपों को लेकर कई एफआईआर दर्ज हुई थीं (संख्या 528/2019 से 539/2019 व 556/2019)। इन सभी मामलों को बाद में जोड़कर एकल मुकदमे के रूप में 8 अगस्त 2024 को विशेष एमपी/एमएलए न्यायालय रामपुर में ट्रायल के लिए भेजा गया।
याचिका में क्या कहा गया?
आज़म खान और उनके सहयोगी वीरेन्द्र गोयल की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता एन.आई. जाफरी, शाश्वत आनंद और शशांक तिवारी ने कोर्ट में दलीलें दीं। उनका कहना है कि ट्रायल कोर्ट निष्पक्ष सुनवाई नहीं कर रहा है। उन्होंने मांग की कि कुछ अहम गवाहों की दोबारा गवाही होनी चाहिए और उस वीडियो फुटेज को रिकॉर्ड में लाया जाए, जिसका जिक्र सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चेयरमैन ज़फर अहमद फारूकी ने किया है। ये वीडियो आज़म खान की घटना स्थल पर मौजूदगी को गलत साबित कर सकती है।
हाईकोर्ट ने क्या फैसला दिया?
न्यायमूर्ति समीत गोपाल की एकल पीठ ने कहा कि चूंकि सह-आरोपियों की याचिका में पहले ही ट्रायल कोर्ट के फैसले पर रोक है, इसलिए फिलहाल आज़म खान को अलग से कोई अंतरिम राहत नहीं दी जा सकती। लेकिन उनकी याचिका को उन्हीं लंबित याचिकाओं से टैग कर दिया गया है, जिससे अब 3 जुलाई को सभी याचिकाओं पर एकसाथ सुनवाई होगी।
ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती
याचिकाकर्ताओं ने ट्रायल कोर्ट द्वारा 30 मई 2025 को दिए गए आदेश को भी चुनौती दी है, जिसमें उनकी यह मांग खारिज कर दी गई थी कि गवाहों को दोबारा बुलाया जाए। खासतौर से ज़फर फारूकी जैसे गवाहों की पुनः गवाही और संदिग्ध वीडियो का रिकॉर्ड में आना, उनके मुताबिक केस की निष्पक्षता के लिए ज़रूरी है।
संविधान का उल्लंघन?
याचिकाकर्ताओं का यह भी दावा है कि यह मुकदमा संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता), 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता), 20 (दंड प्रक्रिया की सुरक्षा) और 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता) का उल्लंघन करता है। उनके अनुसार यह पूरा मामला राजनीतिक प्रतिशोध की भावना से प्रेरित है और इसे पूरी तरह खारिज किया जाना चाहिए।
पूर्व की कार्यवाही
11 जून 2025 को सह-आरोपी मोहम्मद इस्लाम (उर्फ इस्लाम ठेकेदार) की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को अंतिम निर्णय सुनाने से रोक दिया था। उस याचिका में यह दलील दी गई थी कि ट्रायल कोर्ट तेजी से निर्णय सुनाने की ओर बढ़ रहा है, जबकि गवाहों और सबूतों पर दोबारा विचार आवश्यक है।
क्यों है यह मामला राजनीतिक रूप से अहम?
मोहम्मद आज़म खान न केवल एक वरिष्ठ नेता हैं बल्कि मो. अली जौहर विश्वविद्यालय के संस्थापक भी हैं। यह मुकदमा सिर्फ कानूनी नहीं बल्कि राजनीतिक नजरिए से भी काफी संवेदनशील माना जा रहा है। 3 जुलाई को होने वाली सुनवाई में इस बात पर भी चर्चा हो सकती है कि ट्रायल कोर्ट की कार्यवाही निष्पक्ष है या नहीं, और क्या अभियोजन पक्ष जानबूझकर जरूरी सबूतों को रिकॉर्ड में नहीं ला रहा है।
हाईकोर्ट का यह कदम आज़म खान और उनके सह-आरोपियों के लिए एक अहम कानूनी मोड़ है। अब सभी की नजरें 3 जुलाई की सुनवाई पर टिकी होंगी, जहां यह तय हो सकता है कि क्या यह मुकदमा आगे चलेगा या रद्द किया जाएगा। साथ ही, यह भी देखा जाएगा कि क्या इस मामले में कोई राजनीतिक हस्तक्षेप हुआ है या नहीं।
The Allahabad High Court has provided interim relief to senior politician and former UP Minister Azam Khan by tagging his plea in the 2016 eviction case with the pending petitions of his co-accused. The case, rooted in serious allegations including robbery and criminal conspiracy, now awaits a crucial hearing on July 3. With the Sunni Central Waqf Board and vital video evidence at the center, this high-profile trial is not just a legal showdown but also a politically sensitive affair.