Jhunjhunu Elderly Couple Suicide: Sick and Lonely, Their Last Letter Pleads “Don’t Trouble Our Sons”
झुंझुनूं में वृद्ध दंपती की आत्महत्या: बीमारी और अकेलेपन से टूटे, बेटों को कोई भी परेशानी न देने की अंतिम गुज़ारिश
AIN NEWS 1: राजस्थान के झुंझुनूं जिले के मुकुंदगढ़ कस्बे में एक दर्दनाक घटना सामने आई है। यहां एक बुजुर्ग दंपती ने बीमारी और अकेलेपन से परेशान होकर आत्महत्या कर ली। मृतकों की पहचान 80 वर्षीय श्यामसुंदर और 75 वर्षीय चंद्रकला के रूप में हुई है। इस घटना ने पूरे इलाके को झकझोर दिया है। खास बात यह है कि इस दंपती ने जो सुसाइड नोट छोड़ा है, उसमें महज 17 शब्द हैं, लेकिन उन शब्दों ने सभी को अंदर से हिला कर रख दिया।
बीमारी और अकेलापन बना कारण
जानकारी के अनुसार, श्यामसुंदर और उनकी पत्नी चंद्रकला मुकुंदगढ़ के वार्ड नंबर 16 में रहते थे। दोनों पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे। श्यामसुंदर एक लेखक भी थे, जिनकी लेखनी कभी लोगों को प्रेरित करती थी, लेकिन अब बीमारी ने उन्हें तोड़ दिया था। चंद्रकला भी लंबे समय से अस्वस्थ थीं। इस दंपती के तीन बेटे हैं- विकास, राकेश और सुशील, जो जयपुर और बेंगलुरु में नौकरी करते हैं। बेटों के बाहर होने के कारण वे अकेले ही गांव में रहते थे।
घर से बदबू आने पर खुला राज
यह घटना तब सामने आई जब पड़ोसियों को उनके घर से तेज दुर्गंध आने लगी। पहले तो लोगों ने सोचा कि कोई जानवर मरा होगा, लेकिन जब बदबू लगातार बढ़ती गई, तो उन्होंने पुलिस को सूचना दी। पुलिस मौके पर पहुंची और जब दरवाजा तोड़ा गया, तो अंदर का दृश्य बेहद दर्दनाक था। दोनों बुजुर्गों के शव बिस्तर पर पड़े थे और सड़ चुके थे। अनुमान लगाया गया कि उनकी मौत दो-तीन दिन पहले ही हो चुकी थी।
17 शब्दों का सुसाइड नोट
पुलिस को कमरे से एक छोटा सा सुसाइड नोट मिला, जिसे देखकर हर कोई भावुक हो गया। चंद्रकला ने लिखा था, “बीमारी से तंग आ चुके हैं, अब दुनिया छोड़ रहे हैं। हमारे बेटों को परेशान मत करना।” यह नोट बताता है कि दंपती ने अपने बच्चों को दोषी नहीं ठहराया और न ही उनके ऊपर कोई आरोप लगाया। उन्होंने अपने अंतिम समय में भी अपने बच्चों के लिए सिर्फ स्नेह और चिंता दिखाई।
पुलिस जांच में जुटी
मुकुंदगढ़ थाने के एएसआई रतनलाल मीणा ने बताया कि शवों की हालत देखकर यह स्पष्ट था कि मौत दो-तीन दिन पहले हुई थी। गर्मी के कारण शवों में सड़न आ गई थी। पुलिस ने मौके पर एफएसएल और एमओबी टीम को बुलाकर सबूत इकट्ठा किए। दोनों शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए मुकुंदगढ़ अस्पताल की मोर्चरी में भिजवाया गया है। फिलहाल इसे सामूहिक आत्महत्या मानकर जांच की जा रही है।
बेटों की मौजूदगी और गांव वालों की नाराजगी
घटना की सूचना मिलते ही तीनों बेटे जयपुर और बेंगलुरु से मुकुंदगढ़ पहुंचे। गांव पहुंचते ही कुछ पड़ोसियों ने उन्हें ताने मारे और कहा कि माता-पिता को अकेला छोड़कर कैसे रह सकते हो? हालांकि, बेटों ने यह बताया कि वे फोन पर संपर्क में रहते थे और मुमकिन था तो मदद भी करते थे, लेकिन व्यस्तता के कारण बार-बार आना संभव नहीं था। इस बीच बेटों और पड़ोसियों के बीच थोड़ी बहस भी हुई।
पड़ोसियों की गवाही
पड़ोसियों ने बताया कि श्यामसुंदर और चंद्रकला अक्सर बीमार रहते थे और डॉक्टरों के पास जाने के लिए भी उन्हें किसी की मदद की जरूरत होती थी। उन्होंने बताया कि कभी-कभी मोहल्ले के लोग उनकी मदद कर देते थे, लेकिन जब तक बेटे गांव नहीं रहते, तब तक पूरी देखभाल संभव नहीं हो पाती। पड़ोसी महेश पाराशर ने कहा, “यह बहुत दुखद है कि जिन माता-पिता ने बच्चों को पाल-पोसकर बड़ा किया, वे आखिरी वक्त में अकेले रह गए।”
सामाजिक संदेश और चिंता
इस घटना ने समाज में बुजुर्गों के प्रति संवेदनशीलता और जिम्मेदारी को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। एक तरफ जहां युवा बेहतर भविष्य और करियर के लिए शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं, वहीं गांव में बुजुर्ग माता-पिता अकेलेपन और मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं। यह घटना सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि एक सामाजिक चेतावनी भी है कि हमें अपने बुजुर्गों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
मनोवैज्ञानिक क्या कहते हैं?
विशेषज्ञों का कहना है कि अकेलेपन और बीमारी का मेल बुजुर्गों के लिए मानसिक स्वास्थ्य के लिहाज से बेहद खतरनाक हो सकता है। कई बार बुजुर्ग अपनी पीड़ा को व्यक्त नहीं कर पाते और अंदर ही अंदर टूटते रहते हैं। यदि समय रहते उनकी भावनात्मक और चिकित्सकीय जरूरतों को समझा जाए, तो ऐसी दुखद घटनाओं को टाला जा सकता है।
क्या कहती है कानून व्यवस्था?
राजस्थान पुलिस का कहना है कि वे इस केस को आत्महत्या मानकर जांच कर रहे हैं, लेकिन वे पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का इंतजार कर रहे हैं, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि कहीं किसी तरह की कोई बाहरी साजिश तो नहीं थी। पुलिस ने घर से साक्ष्य एकत्र किए हैं और बेटों से भी पूछताछ की जा रही है।
अंतिम संदेश
श्यामसुंदर और चंद्रकला की यह कहानी उन हजारों परिवारों के लिए चेतावनी है, जो अपने माता-पिता को गांव में छोड़कर शहरों में व्यस्त जीवन जी रहे हैं। उनके 17 शब्दों का आखिरी संदेश – “बेटों को परेशान मत करना” – सिर्फ एक वाक्य नहीं, बल्कि उस पीड़ा और प्रेम की गवाही है जो हर बुजुर्ग अपने बच्चों के लिए दिल में रखता है।
A heart-wrenching incident from Mukundgarh in Jhunjhunu, Rajasthan, highlights the devastating impact of illness and loneliness in old age. An elderly couple, Shyamsundar and Chandrakala, died by suicide, leaving behind a powerful 17-word suicide note that pleaded, “Don’t trouble our sons.” The couple’s tragic decision sheds light on the emotional and physical struggles faced by elderly people when isolated from their children. This incident not only shocked the local community but also sparked a broader conversation on mental health, elder care, and family responsibilities. Discover the full story and implications of this tragic event here.