Supreme Court Interim Order on Waqf Law: Importance of Donations Across Religions and Protection of Waqf Properties
दान और वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश: हर धर्म में दान का महत्व और वक्फ संपत्तियों का संरक्षण
AIN NEWS 1 नई दिल्ली: देश के सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में वक्फ संशोधन कानून, 2025 के तीन मुख्य प्रावधानों पर अपना अंतरिम आदेश सुरक्षित रख लिया है। यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने तीन दिनों की लंबी सुनवाई के बाद दिया। इस सुनवाई के दौरान दान की धार्मिक और संवैधानिक महत्ता पर विशेष जोर दिया गया।
दान: हर धर्म की अनिवार्य इच्छा
पीठ ने टिप्पणी की कि दान हर धर्म का हिस्सा है। इसे मोक्ष और स्वर्ग प्राप्ति के लिए किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि दान केवल एक धार्मिक प्रथा नहीं, बल्कि एक संवैधानिक अधिकार भी है, जो हर धर्म के अनुयायियों में गहराई से जुड़ा हुआ है।
सीजेआई ने कहा, “दान हर धर्म का अभिन्न अंग है। दान के माध्यम से लोग आध्यात्मिक लाभ और मुक्ति की कामना करते हैं। संविधान भी दान को सम्मान देता है।”
वक्फ और इस्लाम के पांच अनिवार्य सिद्धांत
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने इस मामले में केंद्र सरकार की दलीलों का कड़ा विरोध किया। सिब्बल ने बताया कि वक्फ इस्लाम धर्म के पांच अनिवार्य स्तंभों में से एक है। ये पाँच स्तंभ हैं:
1. अल्लाह पर ईमान
2. नमाज (प्रार्थना)
3. रोज़ा (व्रत)
4. हज (तीर्थयात्रा)
5. जकात (दान)
सिब्बल ने स्पष्ट किया कि जकात वक्फ के माध्यम से भी किया जाता है, जो अल्लाह के नाम पर दान है और परलोक सुधारने के लिए होता है। इसलिए इसे केवल एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में नहीं, बल्कि इस्लाम के मूलभूत सिद्धांत के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।
केंद्र की दलील और सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि वक्फ इस्लाम का सिर्फ एक सिद्धांत है, अनिवार्य नहीं। इस पर सिब्बल ने कहा कि यह धारणा गलत है क्योंकि दान इस्लाम में अनिवार्य है।
सीजेआई ने इस बहस को संतुलित करते हुए कहा कि हिंदू धर्म में भी दान के माध्यम से मोक्ष की अवधारणा मौजूद है। जस्टिस मसीह ने जोड़ा कि ईसाई धर्म में भी दान से स्वर्ग प्राप्ति की आशा होती है। इस प्रकार, दान सभी धर्मों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, भले ही उसकी विधि या मान्यता अलग-अलग हो।
विवादित संपत्तियों की जांच और असंवैधानिक प्रावधान
सुनवाई के दौरान एक बड़ा मुद्दा विवादित संपत्तियों की जांच को लेकर था। कपिल सिब्बल ने इस जांच प्रक्रिया को मनमाना और असंवैधानिक बताया। उनका कहना था कि वक्फ संपत्तियों के मामले में जांच की कोई निश्चित समय सीमा नहीं है, जिससे संपत्ति का अधिकार मुस्लिम समुदाय से अनियंत्रित तरीके से छीन लिया जा सकता है।
सिब्बल ने कहा, “अगर जांच छह महीने या उससे अधिक तक चली, तब तक तो मुस्लिम समुदाय की संपत्ति से उनका अधिकार खत्म हो चुका होगा। संपत्ति वक्फ है या नहीं, इसका निर्धारण भी सरकार के अधीन है, जो कि पूरी तरह मनमाना है।”
200 साल पुराने कब्रिस्तान और वक्फ का महत्व
सिब्बल ने यह भी बताया कि भारत में 200 साल से भी पुराने कई कब्रिस्तान हैं जो वक्फ संपत्ति माने जाते हैं। अगर सरकार इन्हें अपनी जमीन घोषित कर दे, तो क्या यह संभव होगा कि इतिहासिक कब्रिस्तानों को भी छीन लिया जाए?
इस पर सीजेआई ने जवाब दिया कि 1923 के अधिनियम के तहत यदि संपत्ति का पंजीकरण किया गया है तो उसे छीना नहीं जा सकता। पंजीकरण न होना समस्या है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि संपत्ति को छीन लिया जाए।
वक्फ का पंजीकरण और सरकार की जिम्मेदारी
सिब्बल ने बताया कि वक्फ संपत्तियों के पंजीकरण न होने की जिम्मेदारी राज्यों की है, न कि मुस्लिम समुदाय की। 1995 के अधिनियम ने पंजीकरण की जिम्मेदारी राज्यों को दी थी, लेकिन 1954 से 2013 तक केवल एक राज्य ने वक्फ संपत्तियों का सर्वे किया।
उन्होंने कहा, “सरकार अपनी गलतियों का फायदा कानून बनाकर नहीं उठा सकती। यदि किसी राज्य के पोर्टल पर वक्फ संपत्तियां नहीं दिख रही, तो इसका मतलब यह नहीं कि वहां वक्फ संपत्ति नहीं है।”
मुख्य फैसले के तीन महत्वपूर्ण मुद्दे
सुप्रीम कोर्ट का फैसला तीन मुद्दों पर केंद्रित है:
1. वक्फ बाय यूजर या वक्फ बाय कोर्ट या वक्फ बाय डीड को गैर-अधिसूचित करना
2. राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर हिंदुओं को शामिल करना
3. कलेक्टर की जांच जारी रहने तक विवादित संपत्ति का वक्फ स्टेटस खत्म करना
इन मुद्दों पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना अंतिम निर्णय सुरक्षित रखा है।
दान और वक्फ कानून पर संवैधानिकता
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि उन्होंने पहले भी कहा है कि वक्फ संशोधन कानून की संवैधानिकता के पक्ष में धारणा है। दान सभी धर्मों में समान रूप से सम्मानित है, और वक्फ भी धार्मिक स्वतंत्रता का हिस्सा है।
सिब्बल ने इस बात को दोहराते हुए कहा कि वक्फ के बिना मुस्लिम समाज की धार्मिक संपत्तियों का संरक्षण संभव नहीं है, और सरकार को इस मामले में अधिक संवेदनशीलता दिखानी चाहिए।
इस सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने धर्मों में दान की महत्ता को रेखांकित किया है और वक्फ संपत्तियों की संवैधानिक सुरक्षा पर जोर दिया है। इस मामले का अंतिम फैसला आने तक केंद्र सरकार के तीन विवादास्पद प्रावधानों पर अंतरिम आदेश जारी रहेगा।
वक्फ संपत्तियों का संरक्षण न केवल धार्मिक अधिकारों की रक्षा करता है, बल्कि भारत के सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता के संवैधानिक आधार को भी मजबूत करता है।
The Supreme Court of India has reserved its interim order on the Waqf Amendment Act 2025 after a detailed three-day hearing. The court emphasized the constitutional significance of donations across all religions, particularly highlighting the importance of Waqf as one of Islam’s five mandatory pillars. Senior advocate Kapil Sibal challenged government provisions that risk the rights over historic Waqf properties due to vague investigation clauses and registration issues. The debate underlined that donation (Zakat) and Waqf are integral to religious freedom and property rights. The court’s decision will impact Waqf property registration, state and central Waqf boards, and the rights of minorities in India. This case is crucial for religious donations, Waqf law, and constitutional protections in India.