उत्तर प्रदेश: प्रदेश के इस शहर में दशहरे के दिन होती है रावण की पूजा, 103 साल पुराने इस दशानन मंदिर की ये है मान्यता!

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AIN NEWS 1: उत्तर प्रदेश में दशहरे पर हर कहीं पर लंकेश यानी रावण के पुतले का दहन होता ही है। लेकीन कानपुर में एक ऐसा मंदिर है जिस में 103 साल से ही दशहरा रावण पूजा पर्व बना हुआ है। यह अलग अलग विशेष तिथियों में खुलने वाला रावण मंदिर है।जिसके पट भी केवल दशहरे के दिन ही खोले जाते हैं। शहर के शिवा स्थित इस मंदिर में एक विशेष पूजा की जाती है और सुबह से शाम तक ही साधक यहां पर रावण दर्शन के लिए आते ही रहते हैं। मन्नतें मानने के लिए यहां सरसों के तेल के दीये भी जलाते है विजयादशमी यानी दशहरा के दिन ही मंदिर के पट पूरे विधि विधान के साथ मे खोल दिए जाते हैं। पहले रावण की यहां स्थापित प्रतिमा का श्रृंगार भी किया जाता है। उसके बाद पूजा और आरती की जाती है।

इसके बाद मंदिर में आम लोगों को प्रवेश भी दिया जाता है। रावण को शक्ति के प्रतीक के रूप में पूजने वाले भक्त इस मंदिर में प्रवेश करते हैं। तेल के दीये भी जलाकर मन्नतें मांगने के साथ लोग बल, बुद्धि और आरोग्य का यहां पर वरदान भी मांगते हैं।गुरु प्रसाद शुक्ल ने कराया था निर्माण मंदिर से जुड़े लोग बताते हैं कि इसका निर्माण काफ़ी समय पहले 103 वर्ष या इससे भी पहले महाराज गुरु प्रसाद शुक्ल ने कराया था। इस मंदिर के निर्माण के पीछे भी अनेक धार्मिक तर्क भी हैं। कहा तो जाता है कि रावण बहुत बड़ा विद्वान था। भगवान शिव का भी परम भक्त था। रावण भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए मां छिन्नमस्तिका देवी की आराधना किया करता था। पूजा से प्रसन्न होकर रावण को वरदान दिया था कि उनकी पूजा तब सफल होगी जब श्रद्धालु पहले से ही रावण की पूजा करेंगे। कहते हैं कि शिवाला में 1868 में किसी राजा ने मां छिन्नमस्तिका का मंदिर भी बनवाया था। यहां रावण की एक मूर्ति भी प्रहरी के रूप में ही स्थापित की थी। यह मंदिर भी शारदीय नवरात्र में सप्तमी से नवमी तक ही खुलता है। पहले यहां मां की आरती होती है और फिर रावण की। रावण की प्रतिमा यहीं कैलाश मंदिर के बराबर में ही स्थापित है।तरोई के फूलों का है यहां महत्व रावण के दर्शन करने वाले यहां विशेषकर तरोई के फूल चढ़ाते हैं। दूध, दही, घृत, शहद, चंदन, गंगाजल आदि से अभिषेक भी इनका किया जाता है। सुहागिनें तरोई का पुष्प अर्पित कर अपने अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं। तरोई के फूल शक्ति साधना में ही प्रयोग किए जाते हैं।

उसके बाद शाम को बंद कर दिए जाते हैं कपाट

वर्तमान में छिन्नमस्तिका मंदिर को सार्वजनिक दर्शन के लिए तो बंद कर दिया गया है। इसके बराबर में ही बना दशानन का मंदिर दशहरे पर ही सुबह दर्शन के लिए खोला जाता है और शाम को यह बंद कर दिया जाता है। अमित द्विवेदी बताते हैं कि दशानन के मंदिर के कपाट दशहरा के दिन ही खुलेंगे। यह मंदिर वर्ष में एक ही बार ही खोला जाता है । यह देश का अकेला दशानन मंदिर है।

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