AIN NEWS 1 | ईसाइयों के सबसे बड़े धर्मगुरु पोप फ्रांसिस का 88 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। उन्हें निमोनिया की शिकायत के चलते रोम के जेमेली अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां वो 38 दिनों तक इलाज के बाद जीवन की अंतिम सांस ली। निधन से कुछ समय पहले उन्होंने ईस्टर के अवसर पर श्रद्धालुओं को दर्शन भी दिए थे।
अपने कार्यकाल के दौरान पोप फ्रांसिस ने चर्च की सोच और नीतियों को मृत्युदंड, परमाणु हथियार, और सामाजिक न्याय जैसे विषयों पर नया आयाम देने की कोशिश की। हालांकि कुछ मुद्दों जैसे गर्भपात पर उनका रुख पारंपरिक बना रहा, लेकिन उन्होंने मुसलमानों और अन्य धर्मों से संवाद की पहल की।
🧒 गर्भपात पर पोप फ्रांसिस का नजरिया
पोप फ्रांसिस ने गर्भपात को “थ्रोअवे कल्चर” का हिस्सा बताया और इसकी तुलना भाड़े के हत्यारे से की। उन्होंने चर्च के पारंपरिक विचार को बनाए रखते हुए कहा कि गर्भपात को किसी भी हाल में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि महिलाओं के साथ दयालुता और करुणा का व्यवहार होना चाहिए। उन्होंने पादरियों को गर्भपात कराने वाली महिलाओं को क्षमा देने का अधिकार दिया, जबकि पहले यह अधिकार केवल बिशप के पास होता था।
🌈 LGBTQ+ समुदाय को लेकर उनके विचार
LGBTQ+ समुदाय पर उन्होंने कहा था: “मैं कौन होता हूं न्याय करने वाला?”
उन्होंने माना कि ईश्वर LGBTQ+ लोगों से प्यार करता है और चर्च को भी उन्हें स्वीकार करना चाहिए। हालांकि उन्होंने समलैंगिक कृत्यों को लेकर चर्च के पारंपरिक सिद्धांतों में बदलाव नहीं किया।
अर्जेंटीना में रहते हुए उन्होंने समलैंगिक विवाह का विरोध किया था लेकिन सिविल यूनियन को एक समझौते के रूप में स्वीकार किया।
Pope Francis, the head of the Catholic Church, passed away at the age of 88 after a long battle with pneumonia. Known for his progressive views on issues like the death penalty and nuclear weapons, he maintained a conservative stance on abortion, calling it part of a “throwaway culture.” Despite his traditional beliefs, he emphasized compassion towards women who had abortions and allowed priests to forgive the sin. On LGBTQ rights, he welcomed individuals into the church, famously saying, “Who am I to judge?” His legacy leaves a complex yet compassionate footprint in the modern religious world.