AIN NEWS 1: यूपी में भाजपा संगठन में बड़े बदलाव की तैयारी शुरू हो चुकी है। पार्टी ने यह नियम बनाया है कि लगातार दो बार जिलाध्यक्ष रहने वाले किसी भी व्यक्ति को तीसरी बार मौका नहीं दिया जाएगा। इस बदलाव से 29 जिलाध्यक्षों की विदाई तय मानी जा रही है। नए जिलाध्यक्षों के कंधों पर पंचायत चुनाव 2026 और विधानसभा चुनाव 2027 की बड़ी जिम्मेदारी होगी।
नए जिलाध्यक्षों की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू
भाजपा ने 98 संगठनात्मक जिलों के लिए जिलाध्यक्ष बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। कार्यकाल तीन साल का होगा, और नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 10 जनवरी तय की गई है। 15 जनवरी तक नए जिलाध्यक्षों की घोषणा लखनऊ में की जाएगी।
किन जिलों में बदलेंगे जिलाध्यक्ष?
पार्टी के निर्णय के अनुसार, दो बार से अधिक जिलाध्यक्ष रह चुके नेताओं को हटाया जाएगा। सितंबर 2023 में 98 जिलाध्यक्षों की नियुक्ति हुई थी, जिनमें से 29 जिलाध्यक्ष लगातार दूसरी बार इस पद पर थे। ऐसे जिलों में बदलाव तय है।
मुख्य क्षेत्र और संभावित बदलाव:
1. अवध क्षेत्र: बलरामपुर, गोंडा, अयोध्या, लखीमपुर और उन्नाव।
2. पश्चिम क्षेत्र: सहारनपुर, गाजियाबाद महानगर और नोएडा महानगर।
3. गोरखपुर क्षेत्र: गोरखपुर महानगर, गोरखपुर जिला और संत कबीरनगर।
4. कानपुर क्षेत्र: इटावा, फर्रुखाबाद, बांदा और ललितपुर।
5. ब्रज क्षेत्र: आगरा महानगर, आगरा जिला, फिरोजाबाद महानगर, एटा, कासगंज, बरेली जिला, बदायूं और पीलीभीत।
6. काशी क्षेत्र: वाराणसी महानगर, वाराणसी जिला, जौनपुर, मछलीशहर, सुल्तानपुर और मिर्जापुर।
सांसद-विधायकों की भूमिका अहम
सांसद और विधायक अपनी पसंद के जिलाध्यक्ष नियुक्त करवाने के लिए सक्रिय हो गए हैं। उनकी यह दिलचस्पी आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए है। जिलाध्यक्षों की राय प्रत्याशी चयन में महत्वपूर्ण मानी जाती है, इसलिए सांसद और विधायक अपने समर्थक को इस पद पर देखना चाहते हैं।
VIP जिलों में ऊपर से होंगे फैसले
कुछ महत्वपूर्ण जिलों में जिलाध्यक्षों के नाम शीर्ष नेतृत्व की पसंद से तय होंगे।
वाराणसी: पीएम नरेंद्र मोदी।
गोरखपुर: सीएम योगी आदित्यनाथ।
लखनऊ: रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह।
अमेठी: स्मृति ईरानी।
मुरादाबाद: प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी।
आंतरिक समीकरणों पर विचार
भाजपा नेतृत्व ने जिलाध्यक्ष पद के लिए आयु सीमा 45 से 60 वर्ष तय की है। साथ ही जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए अगड़ी जातियों (ब्राह्मण, ठाकुर, वैश्य आदि), पिछड़ी जातियों (यादव, कुर्मी, मौर्य आदि), और दलित वर्ग (जाटव, पासी, खटिक आदि) को प्रतिनिधित्व देने की योजना है।
नए जिलाध्यक्षों की ताकत
भाजपा ने यह स्पष्ट किया है कि नए जिलाध्यक्षों को अपनी टीम बनाने का मौका मिलेगा। पंचायत और विधानसभा चुनावों में जिलाध्यक्षों की भूमिका अहम होगी। जिलाध्यक्ष का प्रभाव स्थानीय प्रशासन और पुलिस पर भी होता है, जिससे यह पद और महत्वपूर्ण बन जाता है।
प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति पर चर्चा तेज
इस महीने यूपी भाजपा को नया प्रदेश अध्यक्ष भी मिलने की संभावना है। राष्ट्रीय महामंत्री विनोद तावड़े ने प्रदेश अध्यक्ष के लिए सीएम योगी, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक समेत अन्य वरिष्ठ नेताओं से रायशुमारी शुरू कर दी है।
दलित वोट बैंक साधने की कोशिश
सूत्रों के अनुसार, विपक्ष भाजपा के खिलाफ संविधान और डॉ. भीमराव अंबेडकर के मुद्दे उठा रहा है। ऐसे में पार्टी नेतृत्व दलित या पिछड़े वर्ग से प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त कर सकती है।
नई टीम बनाने का मौका नहीं मिलेगा
मौजूदा चुनाव प्रक्रिया के चलते नए प्रदेश अध्यक्ष को जिलाध्यक्ष या मंडल अध्यक्षों की नियुक्ति में दखल देने का मौका नहीं मिलेगा। मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी ने अपनी टीम मार्च 2023 में बनाई थी, लेकिन इस बार नियुक्तियां पहले ही हो जाएंगी।
पर्यवेक्षकों की भूमिका
संगठनात्मक जिलों में पर्यवेक्षक भेजे गए हैं, जो नामांकन प्रक्रिया पूरी करवाकर 11 जनवरी तक अपनी रिपोर्ट प्रदेश मुख्यालय को देंगे। इसके बाद प्रदेश चुनाव प्रभारी महेंद्रनाथ पांडेय और अन्य वरिष्ठ नेता पैनल पर मंथन करेंगे।
नियम टूटने की संभावना
हालांकि, सूत्रों का कहना है कि कुछ जिलाध्यक्ष जो शीर्ष नेतृत्व के करीबी हैं, उन्हें नियमों को दरकिनार कर दोबारा मौका दिया जा सकता है।
भाजपा संगठन में यह बदलाव पार्टी को आगामी पंचायत और विधानसभा चुनावों में मजबूती देने के लिए किया जा रहा है। जिलाध्यक्ष की भूमिका केवल संगठनात्मक कार्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि वह पार्टी की चुनावी रणनीति का भी अहम हिस्सा होते हैं। इस पद के लिए चल रही दौड़ यह दर्शाती है कि पार्टी के भीतर इसे कितनी गंभीरता से लिया जा रहा है।