AIN NEWS 1 नई दिल्ली: ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के अध्यक्ष मौलाना शाहबुद्दीन बरेलवी ने नए साल के जश्न को लेकर एक फतवा जारी किया है। इस फतवे में मुस्लिम समुदाय के युवाओं और युवतियों से 31 दिसंबर को नए साल का जश्न मनाने से बचने की अपील की गई है। बरेलवी का कहना है कि यह जश्न इस्लाम धर्म के खिलाफ है, और इसे कोई गर्व की बात नहीं माना जा सकता।
फतवे में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मुस्लिम समुदाय को न केवल नए साल का जश्न मनाने से बचना चाहिए, बल्कि एक-दूसरे को नए साल की बधाई भी नहीं देनी चाहिए। मौलाना शाहबुद्दीन बरेलवी ने कहा, “नए साल का जश्न मनाना कोई गर्व की बात नहीं है, और ऐसी गैर-धार्मिक गतिविधियाँ मुसलमानों के लिए निषेध हैं।” बरेलवी ने मुस्लिम समुदाय से अपील की कि वे धार्मिक कामों में व्यस्त रहें और ऐसी गतिविधियों से दूर रहें, जो इस्लाम के सिद्धांतों के खिलाफ हों।
यह फतवा “चश्मे दरफ्ता बरेली” की ओर से जारी किया गया है, और इसमें मुस्लिम युवाओं को चेतावनी दी गई है कि वे नए साल के जश्न में शामिल न हों। बरेलवी का कहना है कि इस प्रकार की गतिविधियाँ मुस्लिम समाज के लिए हानिकारक हो सकती हैं और इससे धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँच सकती है।
सलमान रुश्दी की किताब पर विरोध
इस फतवे के साथ-साथ, मुस्लिम संगठनों ने लेखक सलमान रुश्दी की विवादास्पद किताब द सैटेनिक वर्सेज की भारत में फिर से बिक्री शुरू होने पर भी विरोध जताया है। इन संगठनों ने केंद्र सरकार से इस किताब पर प्रतिबंध जारी रखने की मांग की है। जमीयत उलमा-ए-हिंद (एएम) के कानूनी सलाहकार मौलाना काब रशीदी ने कहा, “अगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाती है तो वह अपराध है।” उनका कहना है कि द सैटेनिक वर्सेज जैसी किताबें ईश निंदा से भरी होती हैं और इन्हें बेचने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
न्यू ईयर का जश्न और इस्लाम
न्यू ईयर का जश्न इस्लाम में वर्जित क्यों है, इस बारे में मौलाना शाहबुद्दीन बरेलवी का कहना है कि यह अंग्रेजी कैलेंडर की शुरुआत को मनाने की एक पंरपरा है, जो इस्लाम से संबंधित नहीं है। इस्लाम में धार्मिक पर्वों और तिथियों को विशेष महत्व दिया जाता है, और इस प्रकार के पश्चिमी जश्नों को मना कर मुसलमानों को अपनी धार्मिक पहचान से समझौता करने की जरूरत नहीं है।
इस फतवे के बाद कई मुस्लिम संगठन और धार्मिक नेता इसे एक महत्वपूर्ण कदम मान रहे हैं, जबकि कुछ इसे आधुनिकता के खिलाफ भी मान सकते हैं। फिर भी, यह मामला अब मुस्लिम समाज में एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय बन गया है, और यह देखने वाली बात होगी कि लोग इसे किस तरह से स्वीकार करते हैं।
इस फतवे का मकसद मुस्लिम समुदाय को धार्मिक मूल्यों की ओर मार्गदर्शन करना है और उन्हें पश्चिमी परंपराओं से दूर रखने का है। अब यह मुस्लिम समाज के लिए एक चुनौती होगी कि वे इस अपील को किस हद तक स्वीकार करते हैं और अपने धार्मिक कर्तव्यों को प्राथमिकता देते हैं।