AIN NEWS 1: बता दें कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की तस्वीर भी काफ़ी हद तक साफ होने लगी है। मात्र छह महीने के अंदर ही लगातार दूसरी बार भी भाजपा को एक बड़ा झटका लगा है। हिमाचल प्रदेश के बाद अब देश की बड़ी पार्टी का दावा करने वाली भाजपा के हाथ से कर्नाटक की सत्ता भी पूरी तरह से चली गई। वहीं, पूरे देशभर में ही राजनीतिक संकट से बूरी तरह से जूझ रही कांग्रेस को काफ़ी बड़ी जीत मिली। एक के बाद एक लगातार देश के चुनावों में करारी हार का सामना कर रही कांग्रेस के लिए पहले हिमाचल प्रदेश और अब कर्नाटक चुनाव एक संजीवनी साबित हो सकती है। इन सबके बीच में सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि आखिर कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के कारण क्या रहे? आख़िर कांग्रेस की इस जीत के सियासी मायने क्या हैं?

आज हम विस्तार से समझते हैं…

लेकीन पहले जान ले कर्नाटक चुनाव के रूझान किस तरह हैं? 

कांग्रेस 130

भाजपा 66

जेडीएस 22

अन्य 06

आख़िर कैसे जीत गई कांग्रेस, इसके बड़े क्या रहे कारण

इसे समझने के लिए हमने कई राजनीतिक विश्लेषको से बात की। उनके मुताबिक , ‘कर्नाटक राज्य में 2004, 2008 और फिर 2018 में भी किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत यहां नहीं मिला था। हां लेकीन 2013 में कांग्रेस ने 122 सीटें जीतकर यहां सरकार बनाई थी। और इस सूबे में मुख्य लड़ाई लंबे समय से ही भाजपा और कांग्रेस के बीच में ही रही है। कांग्रेस ने कई बार यहां पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई है, जबकि भाजपा को कभी भी यहां पर पूर्ण बहुमत नहीं मिला। इस बार भी लगभग कुछ ऐसा ही हुआ।’

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1. राज्य में भाजपा की अंदरूनी लड़ाई का मिला फायदा : बीएस येदियुरप्पा को जब से मुख्यमंत्री पद से हटाया गया उसके बाद से ही पूरी भाजपा पार्टी में ही आंतरिक कलह की स्थिति बनी रही। और पार्टी के अंदर ही कई तरह के गुट बन गए। चुनाव के वक्त टिकट बंटवारे से भी कई नेता काफ़ी ज्यादा नाराज हुए और वो बागी हो गए। इसका फायदा सीधे कांग्रेस को ही मिला । कांग्रेस ने अधिकतर भाजपा के बागियों को अपने साथ मे कर लिया। चुनाव में इसका पार्टी को काफ़ी फायदा भी मिला।

2. आरक्षण का वादा भी दे गया काफ़ी ज्यादा फायदा : ये भी एक बड़ा कारण रहा है। कर्नाटक चुनाव में भाजपा ने चार प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण को खत्म करके लिंगायत और अन्य वर्ग में बांट दिया। पार्टी को इससे काफ़ी फायदे की उम्मीद थी, लेकिन ऐन वक्त में कांग्रेस ने अपना बड़ा पासा फेंक दिया। कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में आरक्षण का दायरा कुल 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 75 फीसदी करने का अपना एलान कर दिया। आरक्षण के वादे ने कांग्रेस को काफ़ी बड़ा फायदा पहुंचाया। लिंकायत वोटर्स से लेकर ओबीसी और दलित वोटर्स तक ने इस मामले में कांग्रेस का साथ दिया। वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस ने ये भी वादा कर दिया कि जो चार प्रतिशत मुस्लिम आरक्षण भाजपा ने अभी खत्म किया है, उसे फिर से पूरी तरह शुरू कर दिया जाएगा। इसके चलते जहां एक तरफ कांग्रेस को मुसलमानों का पूरा साथ मिला, वहीं 75 प्रतिशत आरक्षण के वादे ने लिंगायत, दलित और ओबीसी वोटर्स को भी कांग्रेस पार्टी से जोड़ दिया।

3. खरगे का पार्टी अध्यक्ष बनना : ये भी दाव भावनात्मक तौर पर कांग्रेस को काफ़ी फायदा दे गया। कांग्रेस ने चुनाव से पहले ही मल्लिकार्जुन खरगे को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया। यह खरगे कर्नाटक के दलित समुदाय से आते हैं। ऐसे में कांग्रेस ने खरगे के जरिए भावनात्मक तौर पर कर्नाटक के लोगों को भी पार्टी से जोड़ दिया। दलित वोटर्स के बीच भी इसका काफ़ी अच्छा संदेश गया। खरगे ने अपनी चुनावी रैलियों से इसका जिक्र किया।

4. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा : राहुल गांधी ने जो कन्याकुमारी से लेकर जम्मू कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा निकाली थी। इस यात्रा का सबसे ज्यादा समय उनका कर्नाटक में ही बीता था। और ये ही राहुल गांधी की एक बहुत बड़ी रणनीति का हिस्सा रहा। इस यात्रा के जरिए राहुल ने कर्नाटक में कांग्रेस को अन्दर से मजबूत किया। और उनकी अंदरूनी लड़ाइयों को खत्म किया। सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार को एकसाथ लेकर आए और इसका भी काफ़ी फायदा इस चुनाव में देखने को मिल रहा है।

5. भाजपा के बजरंग दल जैसे मुद्दों पर कांग्रेस के मुद्दे भारी पड़े : कर्नाटक में कांग्रेस ने कई नए मुद्दों पर भाजपा को काफ़ी पीछे छोड़ दिया। फिर वह वहा भ्रष्टाचार का मुद्दा हो या ध्रुवीकरण का। बजरंग दल पर बैन की बात करके उन्होने मुस्लिम वोटों को अपने पाले में कर लिया। वहीं, 75 प्रतिशत के आरक्षण का दांव चलकर भाजपा के हिंदुत्व के कार्ड को भी वहा फेल कर दिया। दलित, ओबीसी, लिंगायत वोटर्स को अपने पाले में करने में भी काफ़ी हद तक कामयाबी हासिल की। कांग्रेस के लिए जीत के क्या मायने हैं?

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