Supreme Court Orders Accessible e-KYC for Persons with Disabilities
दिव्यांगों के लिए e-KYC प्रक्रिया अब होगी सुलभ: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
AIN NEWS 1: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा है कि e-KYC (इलेक्ट्रॉनिक नो योर कस्टमर) प्रक्रिया को दिव्यांगजन, विशेष रूप से दृष्टिबाधित और एसिड अटैक पीड़ितों के लिए सुलभ बनाया जाना अनिवार्य है। यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत ‘जीवन के अधिकार’ के दायरे में डिजिटल पहुंच को शामिल करता है।
फैसले की पृष्ठभूमि:
यह निर्णय न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने दिया, जो ऐसी जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी जिसमें दृष्टिबाधित और एसिड अटैक पीड़ितों द्वारा e-KYC प्रक्रिया में आ रही समस्याओं को उठाया गया था।
क्या है e-KYC?
e-KYC एक डिजिटल प्रक्रिया है जिसमें किसी व्यक्ति की पहचान को आधार कार्ड और बायोमेट्रिक या ओटीपी आधारित सत्यापन से प्रमाणित किया जाता है। यह प्रक्रिया बैंक, मोबाइल सिम, सरकारी योजनाओं और अन्य सेवाओं के लिए आवश्यक होती है.
दिव्यांगों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है?
दृष्टिबाधित व्यक्तियों को बायोमेट्रिक आधारित e-KYC में अंगूठा स्कैन या आँख की रेटिना स्कैन जैसी प्रक्रियाओं में कठिनाई होती है।
एसिड अटैक पीड़ितों के मामले में उनके चेहरे या अंगों पर हुए नुकसान के कारण बायोमेट्रिक सत्यापन असफल हो सकता है।
कई बार इन व्यक्तियों को तकनीकी जानकारी की कमी, स्क्रीन रीडर अनुपलब्धता, या ऐप्स की असुलभता के कारण प्रक्रिया पूरी नहीं कर पाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का क्या कहना है?
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि डिजिटल सेवाओं तक पहुंच अब केवल एक सुविधा नहीं, बल्कि एक मौलिक अधिकार है। विशेषकर जब सरकार और निजी क्षेत्र की कई सेवाएं केवल डिजिटल माध्यमों से ही उपलब्ध हैं, तब यह आवश्यक हो जाता है कि सभी नागरिकों, विशेष रूप से दिव्यांगों को समान रूप से इन सेवाओं तक पहुंच मिले।
फैसले की प्रमुख बातें:
1. सरकार और संबंधित एजेंसियों को निर्देश दिया गया है कि वे e-KYC प्रक्रिया को दिव्यांगों के लिए सुलभ बनाएं।
2. स्क्रीन रीडर और ऑडियो गाइड जैसे सहायक टूल्स को शामिल किया जाए।
3. विकल्प के तौर पर फिजिकल वेरिफिकेशन या ह्यूमन असिस्टेंस की व्यवस्था भी हो।
4. सभी डिजिटल सेवाओं को Web Content Accessibility Guidelines (WCAG) के अनुरूप बनाया जाए।
5. यह जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकार दोनों की होगी कि वे इस दिशा में आवश्यक कदम उठाएं।
इस फैसले का महत्व:
यह निर्णय न केवल e-KYC की सुलभता सुनिश्चित करता है, बल्कि एक व्यापक डिजिटल समावेशन (digital inclusion) की दिशा में भी एक बड़ा कदम है। यह उन हजारों दृष्टिबाधित, शारीरिक रूप से अक्षम और एसिड अटैक से पीड़ित लोगों के लिए उम्मीद की किरण है जो अब तक बैंकिंग, मोबाइल सेवाओं और सरकारी योजनाओं से वंचित रह जाते थे।
आगे की राह:
अब सरकार और प्राइवेट संस्थानों की जिम्मेदारी बनती है कि वे इस फैसले को जमीनी स्तर पर लागू करें। मोबाइल ऐप्स, वेबसाइट्स और सर्विस सेंटर्स को इस तरह से डिजाइन किया जाए जिससे दिव्यांगजन भी सहज रूप से इनका उपयोग कर सकें।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारत को एक समावेशी और न्यायसंगत डिजिटल भविष्य की ओर ले जाने वाला मील का पत्थर है। यह केवल दिव्यांगों के अधिकारों की रक्षा नहीं करता, बल्कि समाज में समानता और गरिमा को भी सुनिश्चित करता है।
In a significant ruling, the Supreme Court of India has declared that the e-KYC (electronic Know Your Customer) process must be made accessible to persons with disabilities, including blind individuals and acid attack survivors. The court emphasized that digital accessibility is a core part of the Right to Life under Article 21 of the Constitution. This ruling aims to ensure inclusive digital services in India, empowering marginalized communities to access essential government and financial services through accessible digital platforms.